पिछले माह 25 दिसंबर को चीन ने yarlung Tsangpo (zongbo) नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बाँध बनाने की घोषणा किया। इस प्रोजेक्ट के कारण, फिर से भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ने की आशंका व्यक्त किया गया। जिस तेजी के साथ चीन बाँध बनाने की योजना का विस्तार कर रहा, इससे न सिर्फ पर्यावरण पर खतरा मंडरा रहा है बल्कि लोगों के जीविका पर भी असर देखने को मिलेगा। दुनिया भर के विशेषज्ञों ने इस पर चिंता जाहिर किया। यह चीन का विस्तार रूप रवैया को दर्शाता है। यह परियोजना का अनुमानित लागत 137 बिलियन डॉलर है। इससे पता चलता है की बाँध बनाने की योजना कितना विशाल है।
पूरे मामले को ले करके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का बयान –
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता – रणधीर जयसवाल ने बाकायदा 03 जनवरी 2024 साप्ताहिक प्रेस वार्ता सम्मेलन करके कहा की भारत कभी भी इस तरह के विस्तारवादी रवैया को स्वीकार नहीं करेगा न ही देश की एकता-अखंडता और सुरक्षा से खिलवाड़ होने दिया जायेगा। इस तरह के प्रोजेक्ट को हम पुर जोर से विरोध करते हैं। इस विषय से जुड़े चीजों पर गहराई से अपने विशेषज्ञों के साथ बैठक करके राय जाना जायेगा। इसे कूटनीतिक और राजनैतिक माध्यम से चीनी दूतावास के समक्ष अपना विरोध दर्ज करेंगे अगर जरूरत पड़ी तो वहां के सरकार से इस विषय पर बात करने का प्रयास करेंगे और अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराएँगे। आगे उन्होंने कहा की जिस दो काउंटी पर बाँध बनाने की घोषणा किया गया है। वह तिब्बत में पड़ता है लेकिन उसके कुछ हिस्से अक्साई चीन में आता है जो केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र 1950 से उनके कब्जे में है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस पुरे मामले पर क्या कहना है –

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग की नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस 27 दिसंबर, 2024 को कहा की। इस तरह के बाँध बना करके ग्लोबल वार्मिंग से लड़ा जा सकता है और हमारा लक्ष्य 2060 तक कार्बन मुक्त देश बनना है। इस तरह के परियोजना के बिना लक्ष्य को प्राप्ति नहीं किया जा सकता है इसलिए हमें इस तरह के कार्य को जमीनी स्तर पर उतारना ही पड़ेगा यह समय की मांग है। इसके साथ ही भारत की चिंताओं पर उनका कहना की। इस बाँध परियोजना से पानी की प्रवाह में किसी भी तरह की रुकावट नहीं आएगी। आगे उन्होंने कहा की जरूरत पड़ी तो भारत सरकार से संपर्क किया जायेगा।
तिब्बत में विस्थापन की समस्या चिंता का विषय –
चीनी शासक और प्रशासक द्वारा मानवाधिकारों पर हमला करना कोई नयी बात नयी है, आये दिन वहां से इस तरह की खबरें आती रहती है। पिछले ही वर्ष चीन द्वारा चलाएं जा रहे परियोजना के विरोध में तिब्बत्ती लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया। वहां पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को मारा – पीटा गया , लोग जख्मी हुए और इसके साथ ही कई लोगों को हिरासत में ले लिया गया। वहां पर मानवाधिकारों का हनन होना आम बात है। जिस तरह से वहां पर रह रहे लोगों को प्रताड़ित और अत्याचारों का सहन करना पड़ता है शायद कहीं ओर इस तरह का मामला आये दिन देखने को मिलता हो।
अजीत डोभाल का चीनी दौरा ओर ठीक एक माह बाद यह सब होना –

विदेश मंत्रालय के अनुसार अब तक सीमा को लेकर चीन के साथ 31वें राउंड से ज्यादा बार बैठकें हो चुकी है इसी को ध्यान में रख करके भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चीन के दौरे पर गए। डोवाल ने चीन के अफसरों – नौकरशाहों के साथ सीमा से जुड़े – मुद्दे को लेकर बैठके की। इसके अलावा वहां के उपराष्ट्रपति हं जेंग से मुलाक़ात और एक दूसरे से लम्बी बात – चित होना शामिल रहा। इसके बाऊजुद एक माह बाद यह सब होना यह दर्शाने के लिए काफी है की चीन की कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का फर्क है। उस पर भरोसा कभी नहीं किया जा सकता, धोखा देना उनकी आदत है।
बाँध बनाने के पीछे की मंशा –
चीनी मीडिया के अनुसार – इस परियोजना के जरिये अपने हाइड्रो-प्रोजेक्ट ड्रीम को पूरा करना चाहता है। अगर इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया गया तो इससे करीब 60000 MW पनबिजली का उत्पादन होगा Three Gorges Dam के तुलना में तीन गुना ज्यादा पनबिजली का उत्पादन किया जा सकता है। इसके साथ ही दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो प्रोजेक्ट का तमगा भी हासिल करना है। करीब-करीब 1 लाख 3 हज़ार लोग इससे विस्थापन होंगे या फिर दूसरे जगह शिफ्ट किया जायेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन में इस समय 23841 बड़ा बाँध है अमेरिका के मुकाबले 2 गुना ज्यादा है। ज्यादातर बाँध से बिजली का उत्पादन जारी है। अब तक चीन के द्वारा बनाएं गए अलग-अलग बाँध परियोजनाओं से 3 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापन हो चुके हैं।
सीमा -विवाद को बनाएं रखना चीन का एजेंडा है –
मई 2020 को हुए झड़प में 20 भारतीय सैनिकों ने अपनी शहादत दी। जबकि चीन की सरकार ने सिर्फ 4 सैनिकों की मरने की बात मानी। अगर 4 ही सैनिक मारें गए तो फिर इसे जारी करने में एक साल से ज्यादा का समय क्यों लगाया। इससे पता चलता है की वहां की सरकार द्वारा जारी किये गए आंकड़ों पर आँख बंद करके भरोसा नहीं किया सकता। 1962 की जंग में हज़ारों किलोमीटर की ज़मीन पर चीन अब तक कब्ज़ा जमाये बैठा है। दोनों ही देश 3500 KM की सीमाएं एक – दूसरे से साझा करते हैं। इसके बाउजूद ज्यादातर क्षेत्रों का सीमांकन अब – तक नहीं हो पाया। इसे हम सब लाइन ऑफ़ एक्चुअल कण्ट्रोल या फिर वास्तिक नियंत्रण रेखा के नाम से जानते हैं। चीन का मनसा कभी भी ज़मीन सुलझाने के प्रति रवैया सकारात्मक नहीं रहा है।
बाँध परियोजना का सबसे ज्यादा असर भारत – बंगलदेश पर पड़ेगा –
अगर यह बाँध बन गया तो सबसे ज्यादा असर भारत और बांग्लादेश पर पड़ेगा। ब्रह्मपुत्र सिर्फ नदी नहीं, बल्कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए जीवन – मरण का प्रश्न उत्पन हो जाता है। सबसे ज्यादा असर अरुणाचल और असम पर पड़ेगा। करोड़ों लोग ब्रह्मपुत्र नदी पर आश्रित है यहाँ तक की किसान का एक मात्रा सहारा यही नदी है। इसलिए भारत सरकार को इसे अंतरष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहिए ताकि चीन के दोहरा चरित्र को उजागर किया जा सके।
https://www.mfa.gov.cn/eng/xw/fyrbt/202412/t20241227_11521820.html
https://indiafirst.news/china-announces-construction-of-dam-on-brahmaputra-india-expresses-concern
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