भारतेंदु हरिश्चंद्र, जिन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है, जिनका जन्म 9 सितंबर 1850 को काशी (वर्तमान वाराणसी) में एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। वे हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के उन महानतम विभूतियों में से एक हैं, जिन्होंने भारतीय समाज को न केवल साहित्यिक बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टि से भी नई दिशा प्रदान की। भारतेंदु ने एक ऐसे युग की स्थापना की, जिसे हिंदी साहित्य में “भारतेंदु युग” के नाम से जाना जाता है। उनकी पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करना केवल उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को सम्मान देना नहीं है, बल्कि हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति की महत्ता को भी समझना है।
भारतेंदु का जीवन परिचय
भारतेंदु हरिश्चंद्र का मूल नाम हरिश्चंद्र था। उनका परिवार संपन्न और विद्वान था। उनके पिता गोपाल चंद्र एक महान कवि और कलाकार थे, जिनका प्रभाव भारतेंदु के साहित्यिक जीवन पर पड़ा। बाल्यकाल से ही वे साहित्य और कला के प्रति आकर्षित थे। मात्र 15 वर्ष की आयु में उन्होंने साहित्यिक रचनाएं लिखनी प्रारंभ कर दी थीं। भारतेंदु के जीवन में काशी का विशेष महत्व रहा है, क्योंकि काशी ने ही उनके साहित्य और चिंतन को एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया।
भारतेंदु का व्यक्तिगत जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने मात्र 26 वर्ष की आयु में अपने पिता को खो दिया, और 34 वर्ष की अल्पायु में ही उनका निधन हो गया। इतने छोटे जीवन काल में उन्होंने जो योगदान दिया, वह अद्वितीय और अतुलनीय है।
हिंदी साहित्य और नाट्य कला में योगदान
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी भाषा को उस समय एक नई पहचान दी जब यह साहित्यिक स्तर पर केवल प्राचीन और अव्यवस्थित रूप में विद्यमान थी। उन्होंने हिंदी को जन भाषा के रूप में प्रोत्साहित किया और इसे साहित्य, पत्रकारिता, और नाट्य कला में स्थापित किया।
कविता और गद्य में योगदान
भारतेंदु की कविताओं में सामाजिक और राष्ट्रीय भावनाओं की प्रधानता है। उनकी रचनाएं केवल मनोरंजन के लिए नहीं थीं, बल्कि समाज को जागरूक करने और उसे दिशा देने का उद्देश्य रखती थीं। उनकी कविताएं, जैसे “भारत दुर्दशा,” ने समाज में देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता उत्पन्न की।
गद्य साहित्य में भी उनका योगदान अप्रतिम है। उन्होंने निबंध, व्यंग्य और कहानियों के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार प्रकट किए। उनका लेखन भाषा में सरलता और प्रवाह के साथ-साथ गहन विचारधारा का प्रतीक है।

नाटक और रंगमंच में योगदान
भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी नाटक का जनक माना जाता है। उन्होंने समाज की कुरीतियों, आर्थिक विषमताओं और सांस्कृतिक पतन को उजागर करने के लिए नाटकों का सृजन किया। उनके प्रसिद्ध नाटकों में “भारत दुर्दशा,” “अंधेर नगरी,” और “सत्य हरिश्चंद्र” शामिल हैं। इन नाटकों में उन्होंने समाज को सुधारने और जागरूक करने का प्रयास किया।
विशेष रूप से “अंधेर नगरी” एक कालजयी नाटक है, जो आज भी प्रासंगिक है। इसमें उन्होंने भ्रष्टाचार और राजनीतिक अव्यवस्था पर तीखा व्यंग्य किया। उनके नाटकों ने भारतीय रंगमंच को नई दिशा दी और इसे समाज सुधार का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाया।
पत्रकारिता में अतुलनीय योगदान और अमिट छाप छोड़ी
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी क्रांति लाई। उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को जन-जागरण का माध्यम बनाया। उन्होंने “हरिश्चंद्र चंद्रिका,” “कविवचन सुधा,” और “बाल बोधिनी” जैसे पत्र-पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन किया। इन पत्रिकाओं ने समाज को न केवल साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध किया, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक चेतना को भी प्रोत्साहित किया।
भारतेंदु के संपादकीय लेखों में समाज और राष्ट्र के प्रति उनकी गहरी चिंताएं झलकती हैं। उन्होंने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों और भारतीय समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी।
सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना के प्रवाहक
भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्य केवल रचनात्मकता तक सीमित नहीं था, बल्कि वह भारतीय समाज और राष्ट्र के प्रति उनकी गहरी चिंताओं का प्रतिबिंब भी था। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति, सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संदेश दिया।
भाषा और संस्कृति के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान
भारतेंदु ने हिंदी को न केवल साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित किया, बल्कि इसे जन-जन की भाषा बनाया। उन्होंने अंग्रेजी और उर्दू के प्रभाव से हिंदी को बचाने और इसे भारतीय संस्कृति का आधार बनाने का प्रयास किया। उनके समय में हिंदी भाषा को उपेक्षित माना जाता था, लेकिन उन्होंने इसे एक सशक्त और समृद्ध भाषा में परिवर्तित किया।
भारतीय सामाजिक सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाई
भारतेंदु ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, जैसे दहेज प्रथा, बाल विवाह और जातिगत भेदभाव, के खिलाफ अपनी रचनाओं के माध्यम से आवाज उठाई। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों पर भी जोर दिया। उनका मानना था कि समाज का विकास तभी संभव है जब उसमें सभी वर्गों और जेंडर को समान अवसर मिले।
साहित्य में भारतेंदु युग की विशेषताएं
भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिंदी साहित्य में जो युग प्रारंभ हुआ, उसे “भारतेंदु युग” कहा जाता है।
इस युग की मुख्य विशेषताएं
देशभक्ति और समाज सुधार: रचनाओं में राष्ट्रप्रेम और समाज सुधार का प्रमुख स्थान।
सरल भाषा शैली: साहित्य को आम जन के लिए सुलभ बनाने का प्रयास।
नवीन विधाओं का विकास: नाटक, गद्य और पत्रकारिता का उन्नयन।
सांस्कृतिक जागरण: भारतीय संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित करना।

भारतेंदु का प्रभाव और विरासत
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जो विचार और दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, वह आज भी हिंदी साहित्य और समाज के लिए प्रेरणादायक है। उनकी रचनाएं केवल उनके युग तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित किया। उनके नाटकों, कविताओं और गद्य साहित्य ने साहित्य को समाज और राष्ट्र के लिए एक प्रभावशाली माध्यम बनाया। उनकी पुण्यतिथि पर हमें उनके विचारों और कृतियों को आत्मसात करते हुए हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए। भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज सुधार और जागृति का महत्वपूर्ण माध्यम भी हो सकता है।
संक्षिप्त जीवन, अनंत योगदान
महज 34 वर्ष की अल्पायु में 6 जनवरी 1885 को भारतेंदु हरिश्चंद्र का निधन हो गया। लेकिन इतने कम समय में भी उन्होंने हिंदी साहित्य को जो समृद्धि और दिशा दी, वह अद्वितीय है। उनकी रचनाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं और हिंदी भाषा के विकास में उनके योगदान को याद दिलाती हैं।
भारतेंदु की पुण्यतिथि पर प्रेरणा
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य को जो ऊंचाई दी, वह उनकी अद्वितीय प्रतिभा और देशभक्ति का प्रमाण है। भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर हमें उनके आदर्शों और विचारों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। उनकी रचनाएँ केवल साहित्य का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे हमें अपने समाज, भाषा और देश के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराती हैं।
उनकी यह पंक्ति आज भी हमें प्रेरणा देती है:
“सुर सरस्वती देश को, सब उन्नति के मूल।
भारतेंदु हिय हर्ष कर, सब विधि देब सहाय।”
भारतेंदु हरिश्चंद्र को उनकी पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन। उनकी विरासत को सहेजना और आगे बढ़ाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
https://indiafirst.news/tribute-to-bharatendu-harishchandra-on-his-death-anniversary
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