वर्धा (महाराष्ट्र): जिले के आर्वी और कारंजा घाडगे तहसील के समीप स्थित खैरवाड़ा गांव का इतिहास करीब 3000 साल पुराना है। यहां जंगलों में मौजूद पथरीले सर्कल्स लोहयुग की निशानियां हैं, जो अनुसंधान के अभाव में अब तक रहस्य बने हुए हैं। इन अवशेषों को लेकर लंबे समय से खैरवाड़ा को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की मांग की जा रही है।
इतिहास में दफन हैं रहस्य
खैरवाड़ा गांव के पास पाए गए पथरीले सर्कल्स को पहली बार 1881 में डॉ. जे. कैरन ने खोजा। इसके बाद 1981 में डेक्कन कॉलेज, पुणे के पुरातत्व विभाग ने यहां व्यापक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में करीब 1500 पथरीले सर्कल्स मिले, जिनका व्यास 30 से 50 फीट और ऊंचाई 3 से 5 फीट तक है। यह प्रमाणित हुआ कि यह संरचनाएं ईसा पूर्व 1000 से 700-800 के बीच की हैं।
लोहयुग में इन सर्कल्स का उपयोग खास दफन विधियों के लिए होता था। शवों के साथ मृतकों की प्रिय वस्तुएं और दैनिक उपयोग की सामग्री दफनाई जाती थीं। इसके बाद गड्ढे को पत्थरों से घेरकर सर्कल का रूप दिया जाता था।

पर्यटन केंद्र की मांग अधूरी
विदर्भ पर्यटन और पार्वण संस्था की ओर से खैरवाड़ा को पर्यटन केंद्र बनाने और यहां पुरातत्व संग्रहालय स्थापित करने की मांग बीते 20 वर्षों से की जा रही है। लेकिन, सरकार की अनदेखी के कारण यह मांग आज भी अधूरी है। स्थानीय विधायक सुमित वानखेड़े ने अब इस मुद्दे को सरकार तक पहुंचाने की पहल की है।
अनुसंधान की आवश्यकता
विशेषज्ञों का कहना है कि यहां के पथरीले सर्कल्स के विभिन्न आकारों और संरचनाओं को लेकर गहन अनुसंधान की जरूरत है। हर सर्कल में करीब 40 पाषाण खंड मौजूद हैं, जिनमें कुछ पांच और छह कोणीय आकार के हैं। इन संरचनाओं से लोहयुग की संस्कृति और जीवनशैली पर रोशनी डाली जा सकती है।

पर्यटन से होगा विकास
अगर खैरवाड़ा को पर्यटन केंद्र घोषित किया जाता है, तो यह न केवल इस ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करेगा, बल्कि स्थानीय रोजगार और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा। विशेषज्ञों और स्थानीय संगठनों का कहना है कि सरकार को इस क्षेत्र के महत्व को समझते हुए तत्काल कदम उठाने चाहिए।
क्या 3000 साल पुराने इस इतिहास को संरक्षण मिल पाएगा? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।
Reported By- चेतन
https://indiafirst.news/the-need-to-reveal-the-mystery-of-khairwada
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