नई दिल्ली/गोड्डा: झारखंड की गोड्डा लोकसभा सीट से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में संथाल परगना को अलग राज्य बनाने की मांग उठाकर एक नई बहस छेड़ दी है। बुधवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान उन्होंने झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाया और कहा कि इससे आदिवासी समाज के हितों को नुकसान हो रहा है। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि अगला परिसीमन इस जनसांख्यिकीय बदलाव को ध्यान में रखते हुए किया जाए और जरूरत पड़ने पर झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने पर भी विचार किया जाए।
संथाल परगना में घुसपैठ पर जताई चिंता
सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में कहा कि 1951 से 2011 के बीच पूरे देश में मुस्लिम आबादी मात्र चार प्रतिशत बढ़ी, लेकिन झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में यह बढ़ोतरी 15 प्रतिशत रही। उनके अनुसार, 1951 में संथाल परगना में आदिवासी समुदाय की आबादी 45 प्रतिशत थी, जो 2011 में घटकर 28 प्रतिशत रह गई, जबकि मुस्लिम आबादी 9 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत हो गई। उन्होंने इस बदलाव के पीछे बांग्लादेशी घुसपैठ को मुख्य कारण बताया।
‘परिसीमन में घुसपैठियों को अलग किया जाए’
दुबे ने लोकसभा में कहा, “झारखंड का संथाल परगना क्षेत्र आदिवासी बहुल इलाका था, लेकिन घुसपैठ के कारण यहां की जनसांख्यिकी तेजी से बदल रही है। इससे आदिवासी समुदाय के राजनीतिक अधिकार और सीटें प्रभावित हो रही हैं। मेरा आग्रह है कि अगले परिसीमन में बांग्लादेशी घुसपैठियों को अलग करके प्रक्रिया पूरी की जाए।”
संथाल परगना को अलग राज्य बनाने की वकालत
भाजपा सांसद ने संथाल परगना को एक अलग राज्य बनाने की जरूरत भी बताई। उन्होंने कहा कि यदि सरकार उचित समझे, तो इस पूरे क्षेत्र को एक नया राज्य घोषित कर सकती है। उनका दावा है कि यह मांग किसी जाति या धर्म विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए है।
झारखंड में राष्ट्रपति शासन की मांग
सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड की मौजूदा स्थिति को लेकर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या को नजरअंदाज कर रही है, जिससे कानून-व्यवस्था बिगड़ रही है। उन्होंने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि यदि आवश्यकता हो, तो झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार किया जाए।
राजनीतिक हलचल तेज
दुबे के इस बयान के बाद झारखंड की राजनीति गरमा गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और कांग्रेस ने उनके बयान की आलोचना करते हुए इसे ‘साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति’ करार दिया है। वहीं, भाजपा के कई नेता उनके समर्थन में सामने आए हैं और संथाल परगना में आदिवासी हितों की रक्षा की जरूरत बताई है।
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