नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में 25 हजार शिक्षकों और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस भर्ती प्रक्रिया को “फर्जी” करार दिया। हालांकि, शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि नियुक्त किए गए अभ्यर्थियों को अब तक मिले वेतन को लौटाने की आवश्यकता नहीं होगी।
नए भर्ती प्रक्रिया में गैर-दागी अभ्यर्थियों को मिलेगी छूट
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि नई नियुक्ति प्रक्रिया में उन अभ्यर्थियों को शामिल किया जा सकता है, जिन पर किसी प्रकार के भ्रष्टाचार या अनियमितता के आरोप नहीं हैं। यह फैसला 10 फरवरी को सुरक्षित रखा गया था, जिसे अब सुनाया गया है।
कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला और विवाद
कलकत्ता हाई कोर्ट ने 22 अप्रैल 2024 को शिक्षकों की भर्ती को अवैध घोषित कर दिया था। कोर्ट ने लगभग 24 हजार अभ्यर्थियों की नियुक्तियों को रद्द करने का आदेश दिया था और उनके द्वारा प्राप्त वेतन को भी लौटाने का निर्देश दिया था। इसके खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी।
राज्य सरकार का तर्क था कि हाई कोर्ट का यह फैसला मनमाना है और इसके कारण राज्य के स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित होगी। सरकार ने दलील दी थी कि बिना किसी हलफनामे और उचित मौखिक दलील के आधार पर हाई कोर्ट ने यह कठोर निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
इससे पहले, तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 7 मई 2024 को इस मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि यह भर्ती प्रक्रिया एक “सुनियोजित साजिश” थी और अधिकारियों को इस भर्ती प्रक्रिया से संबंधित सभी डिजिटल रिकॉर्ड बनाए रखने चाहिए थे।
राजनीतिक सरगर्मियां तेज
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति गरमा गई है। विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए इस्तीफे की मांग की है। वहीं, राज्य सरकार ने कहा है कि वह नए सिरे से भर्ती प्रक्रिया शुरू करेगी और योग्य उम्मीदवारों को न्याय दिलाने की कोशिश करेगी।
यह फैसला न केवल पश्चिम बंगाल के शिक्षा विभाग के लिए बड़ा झटका है, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक मिसाल भी कायम करता है कि सरकारी भर्तियों में अनियमितताओं को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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