आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक के विस्तार के साथ-साथ अब इसके दुरुपयोग की खबरें भी तेजी से सामने आ रही हैं। ChatGPT जैसे जनरेटिव एआई टूल्स की नई इमेज निर्माण क्षमताओं का प्रयोग अब फर्जी आधार कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसी पहचान पत्रों को तैयार करने के लिए किया जा रहा है। इससे देश की डिजिटल और आंतरिक सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुई कई तस्वीरों में दावा किया गया कि OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन, टेस्ला प्रमुख एलन मस्क और यहां तक कि प्राचीन भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर भी आधार और पैन कार्ड बनाए गए हैं। इन फर्जी दस्तावेजों को देखकर आम लोगों के साथ-साथ विशेषज्ञ भी हैरान हैं।
GPT-4o से मिली नई तकनीकी क्षमता
पिछले सप्ताह OpenAI ने अपने लोकप्रिय एआई चैटबॉट ChatGPT में GPT-4o नामक एक नया फीचर जोड़ा, जो टेक्स्ट से हाई-क्वालिटी इमेज बनाने की क्षमता रखता है। हालांकि यह फीचर शुरू में घिबली स्टाइल की कलात्मक तस्वीरें बनाने के लिए चर्चित हुआ था, लेकिन जल्द ही कुछ यूजर्स ने इसका प्रयोग फर्जी दस्तावेज बनाने में करना शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही नकली आईडी
ट्विटर, रेडिट और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर दर्जनों पोस्ट सामने आए हैं, जिनमें लोगों ने अपने बनाए नकली आधार कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस को दिखाया है। इनमें कई तो हास्य के तौर पर बनाए गए हैं, लेकिन कुछ में स्पष्ट रूप से ऐसा प्रतीत होता है कि इन दस्तावेजों का उपयोग धोखाधड़ी के लिए भी किया जा सकता है।
विशेषज्ञों ने जताई गहरी चिंता
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों की कुछ हद तक ट्रैकिंग की जा सकती है, क्योंकि उनके साथ बायोमेट्रिक और अन्य डिजिटल वेरिफिकेशन जुड़ा होता है। लेकिन पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे डॉक्यूमेंट्स में इस तरह की पुष्टि प्रणाली का अभाव है, जिससे इनकी वैधता जांचना मुश्किल हो सकता है।
साइबर कानून विशेषज्ञ अधिवक्ता चेतन शर्मा ने कहा, “यदि एआई टूल्स के जरिए असली जैसे दिखने वाले पहचान पत्र बनना शुरू हो जाएं और वे किसी डिजिटल या ऑफलाइन प्रक्रिया में प्रयोग किए जाएं, तो यह न केवल व्यक्ति विशेष के लिए खतरनाक है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन सकता है।”
OpenAI और नियामक संस्थाओं पर उठे सवाल
हालांकि OpenAI ने अपनी नीतियों में स्पष्ट किया है कि वह फर्जी या भ्रामक कंटेंट के निर्माण की इजाजत नहीं देता, लेकिन इस घटना ने यह सवाल जरूर खड़ा किया है कि क्या AI कंपनियों को अपने टूल्स के उपयोग पर अधिक निगरानी और नियंत्रण रखना चाहिए?
साइबर कानून विशेषज्ञ यह भी मांग कर रहे हैं कि भारत सरकार को इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश और कानून बनाने चाहिए, ताकि AI टूल्स के जरिए बनने वाले फर्जी दस्तावेजों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जा सकें।
AI तकनीक जहां एक ओर रचनात्मकता और उत्पादकता को बढ़ाने का माध्यम बन रही है, वहीं इसके गलत इस्तेमाल से समाज और सिस्टम के लिए खतरे भी उत्पन्न हो रहे हैं। ChatGPT जैसे टूल्स के जरिए फर्जी आधार, पैन और ड्राइविंग लाइसेंस का बनना यह दिखाता है कि तकनीक का नियमन समय की मांग है।
सरकार, कंपनियों और आम नागरिकों- तीनों को मिलकर इस दिशा में सजगता दिखानी होगी, वरना एक मज़ाक से शुरू हुआ ट्रेंड, भविष्य में गंभीर साइबर अपराधों का जरिया बन सकता है।
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