चिकित्सा के क्षेत्र में, यह आश्चर्यजनक लग सकता है, लेकिन बायोमेडिकल इंजीनियर अब अस्पतालों में आवश्यक हैं – न कि केवल डॉक्टरों के लिए। 1945 से, चिकित्सा और इंजीनियरिंग प्रयोगशालाओं के बीच सहयोग ने बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के विकास को जन्म दिया है। बायोमेडिकल उपकरणों का उपयोग करने से पहले, इंजीनियरों को मानव शरीर के कार्यों और उनके द्वारा संचालित मशीनों के प्रभावों को अच्छी तरह से समझना चाहिए। जिस तरह इंजीनियर लागत प्रभावी समाधान बनाने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों को लागू करते हैं, उसी तरह बायोमेडिकल इंजीनियर अपनी विशेषज्ञता के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक सेवा में जटिल चुनौतियों को सरल बनाने का प्रयास करते हैं।
कार्य प्रकृति
कई तरह के बायोमैडीकल उपकरणों की मौजूदगी के कारण इंजीनियरिंग की किसी एक शाखा में इनका समावेश कठिन हो सकता है। बायोमैडीकल इंजीनियर फिजियोलॉजिकल सिस्टम्स के लिए कम्प्यूटर मॉडल तैयार करते हैं। गंभीर रोगों से ग्रस्त रोगियों के लिए मशीनें तैयार करते हैं। गंभीर रूप से जले व लकवे के शिकार पीड़ितों के उपचार हेतु कम्प्यूटर चालित उपकरणों का विकास करना भी इन्हीं के कार्य में शामिल है।
चोट लगने व घाव भरने संबंधी बायो-मैकेनिक्स विकसित करना, एक्स-रे आधारित मैडीकल इमेजिंग सिस्टम का विकास करने से लेकर कृत्रिम हृदय, अन्य कृत्रिम अंग, सर्जरी में लेजर तकनीक का इस्तेमाल, क्रायोसर्जरी, अल्ट्रासोनिक्स तथा रोग के उपचार में थर्मोग्राफी के कम्प्यूटर का इस्तेमाल करते हुए रक्त में सोडियम, पोटाशियम, आक्सीजन, कार्बन डाइआक्साइड तथा पी.एच. आदि मापने के लिए सैंसर्स का विकास करना आदि अब इनके कार्य में समाहित है। उच्च स्तर के ये वैज्ञानिक इंजीनियरिंग तथा जीव विज्ञान के सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हुए मानव तथा जीव विज्ञान के जैविक पहलुओं पर अनुसंधान करते हैं। लकवे के शिकार पीड़ितों के उपचार हेतु कम्प्यूटर चालित उपकरणों का विकास करना भी इन्हीं के कार्य में शामिल है।
विशेषज्ञता के क्षेत्र
- बायो इंस्ट्रूमेंटेशन : बीमारियों के उपचार तथा इलैक्ट्रॉनिक्स में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों की डिजाइनिंग और पैमाने का प्रयोग क्षेत्र।
- बायो मैकेनिक्स : चिकित्सा समस्याओं के समाधान में मैकेनिक्स का इस्तेमाल, जैसे कृत्रिम गुर्दा, कृत्रिम हृदय आदि।
- बायो मैटीरियल्स : मानव शरीर के लिए जीवित ऊतकों तथा पदार्थों का चयन बड़ा चुनौतीपूर्ण है। यह इसी से संबंधित है।
- सिस्टम फिजियोलॉजी : इसके तहत बायोकैमिस्ट्री आफ मैटाबोलिज्म तथा लिम्ब मूवमैंट का अध्ययन होता है।
- रिहैबिलिटेशन इंजीनियरिंग : इस क्षेत्र के अनुसंधान का प्रमुख उद्देश्य शारीरिक रूप से अपंग लोगों की गुणवत्ता विकसित करना है। इसके अतिरिक्त इन क्षेत्रों में रोबोटिक्स, बायोमैडीकल इलैक्ट्रॉनिक्स, क्लीनिकल इंजीनियरिंग इलैक्ट्रॉनिक्स, क्लीनिकल इंजीनियरिंग भी सम्मिलित हैं।
- शिक्षा : बायोमैडीकल इंजीनियरिंग कोर्स में दाखिले के लिए फिजिक्स, कैमिस्ट्री, बायोलॉजी व गणित विषयों के साथ बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। कई संस्थानों में दाखिला प्रवेश परीक्षा के आधार पर दिया जाता है।
- अवसर : इंजीनियरिंग व चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में महारत हासिल करने के कारण बायोमैडीकल इंजीनियर अक्सर एक समन्वयक की भूमिका का निर्वाह करते हैं। वे चिकित्सा क्षेत्र में हर स्तर पर इस्तेमाल किए जाने वाले इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्ञान रखते हैं। इनकी नियुक्ति विभिन्न अस्पतालों, नर्सिंग होम्स, रिसर्च लैब्स, इंडस्ट्रीज, दवा निर्माण कम्पनियों तथा सरकारी एजैंसियों में होती है।
- अवसर : इंजीनियरिंग व चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में महारत हासिल करने के कारण बायोमैडीकल इंजीनियर अक्सर एक समन्वयक की भूमिका का निर्वाह करते हैं। वे चिकित्सा क्षेत्र में हर स्तर पर इस्तेमाल किए जाने वाले इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्ञान रखते हैं। इनकी नियुक्ति विभिन्न अस्पतालों, नर्सिंग होम्स, रिसर्च लैब्स, इंडस्ट्रीज, दवा निर्माण कम्पनियों तथा सरकारी एजैंसियों में होती है।
प्रशिक्षण संस्थान
इस कोर्स की शिक्षा देने वाले कुछ संस्थान इस प्रकार हैं-
- आल इंडिया इंस्टीच्यूट आफ मैडीकल साइंसेज (एम्स), अंसारी नगर, नई दिल्ली।
- महात्मा गाधा कालज आफ इंजीनियरिंग एंड टैक्नोलॉजी पालभेल एक्सप्रैस वे, कामोथ, नवी मुम्बई।
- मणिपाल इंस्टीच्यूट आफ टैक्नोलॉजी, इम्फाल ।
- बिड़ला इंस्टीच्यूट आफ टैक्नोलॉजी, मेसरा, रांची।
- दयानंद सागर कालेज आफ इंजीनियरिंग सामिज, बेंगलूर।
- इंडियन इंस्टीच्यूट आफ टैक्नोलॉजी, पवई, मुम्बई।
- सैंटर फार मैडीकल इंस्ट्रूमेंटेशन, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई।,
- यूनिवर्सिटी कालेज आफ इंजीनियरिंग, उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद।
- सैंटर फार बायोमैडीकल इंजीनियरिंग, आई.आई.टी., दिल्ली।
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