☀️
–°C
Fetching location…
🗓️ About Join Us Contact
☀️
–°C
Fetching location…

Updates

Categories

Join US

खाद्य उद्योग की समस्याएँ: स्वास्थ्य, स्थिरता और नैतिकता (Part-2)

,

खाद्य उद्योग में जो समस्याएँ उभरी हैं, उनका असर न केवल पर्यावरण पर पड़ता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और सामाजिक संरचना पर भी इसका गंभीर प्रभाव दिखाई देता है। आधुनिक खाद्य प्रणाली ने उपभोक्ताओं को सस्ते, प्रोसेस्ड और त्वरित भोजन की बाढ़ दी है, लेकिन इसके साथ कई समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। यह पार्ट खाद्य उद्योग से जुड़ी प्रमुख समस्याओं पर चर्चा करेगा, जिनमें स्वास्थ्य जोखिम, पर्यावरणीय संकट, और नैतिक जैसे मुद्दे शामिल हैं।

स्वास्थ्य संकट: प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों का बढ़ता प्रभाव

वर्तमान खाद्य उद्योग का सबसे बड़ा संकट स्वास्थ्य से संबंधित है। अत्यधिक प्रोसेस्ड और तैलीय खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत ने दुनिया भर में मोटापा, मधुमेह, और हृदय रोगों जैसी बीमारियों में वृद्धि की है। ये खाद्य पदार्थ आमतौर पर उच्च कैलोरी, नमक, चीनी, और अस्वास्थ्य वसा से भरपूर होते हैं, जिनका नियमित सेवन दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, खाद्य उद्योग में अधिक शक्कर और ट्रांस वसा का उपयोग करने से, शरीर में सूजन और हृदय से संबंधित रोगों का जोखिम को बढ़ता है।

उदाहरण के लिए, WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने 2015 में घोषणा किया और बताया कि प्रोसेस्ड मांस उत्पादों की अत्यधिक खपत कैंसर का कारण बन सकती है, विशेष रूप से कोलोन और अन्य आंतों के कैंसर। यही कारण है कि वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि हमें अधिक प्राकृतिक, कम प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

इसके अलावा, ऑल-डे ब्रेकफास्ट फूड, स्ट्रीट फूड्स, और सोडा जैसे पेय पदार्थों की बढ़ती खपत युवा पीढ़ी में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को उत्पन्न कर रही है। भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान न देने से, उच्च रक्तचाप, मोटापा, और प्रकार-2 मधुमेह जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। इस प्रकार के खाद्य पदार्थों में अत्यधिक रसायन और अत्यधिक रोग को जन्म देने वाले तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

पर्यावरणीय संकट: कृषि और मांस उत्पादन का प्रभाव

खाद्य उत्पादन का पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आधुनिक कृषि पद्धतियाँ, विशेष रूप से औद्योगिक कृषि और मांस उत्पादन, पर्यावरणीय संकट के प्रमुख कारण हैं। भूमि का अत्यधिक दोहन, जल संसाधनों का अत्यधिक उपयोग, और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन उन प्रमुख कारकों में से एक हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

मांस उत्पादन सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्या है। पशुपालन के लिए भूमि की आवश्यकता, चारे का उत्पादन, और मवेशियों से होने वाली मीथेन गैस का उत्सर्जन, कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाता है। मांस उत्पादन से होने वाली ग्रीनहाउस गैसों का हिस्सा करीब 14.5% तक है, जो पूरे विश्व के उत्सर्जन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यही कारण है कि पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हम मांस की खपत को कम करें और पौधों पर आधारित आहार को प्राथमिकता दें, तो हम जलवायु परिवर्तन को रोकने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं।

इसके अलावा, नदियों और झीलों के पानी में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का मिश्रण जल प्रदूषण का कारण बन रहा है। ये रसायन मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई भी कृषि उद्देश्यों के लिए की जा रही है, जिससे इकोलॉजी तंत्र को नुकसान पहुंच रहा है और कई वन्य प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं।

नैतिक मुद्दे: मांस उद्योग और श्रमिक शोषण

खाद्य उद्योग में नैतिक समस्याएँ भी हैं, जिनमें विशेष रूप से मांस उद्योग और श्रमिकों का शोषण शामिल हैं। मांस उत्पादन उद्योग में पशुओं के साथ किए जाने वाले अमानवीय व्यवहार को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं। बड़े पैमाने पर मांस उत्पादन के लिए गायों, मुर्गों और सूअरों को अत्यधिक भीड़-भाड़ वाले खेतों में रखा जाता है, जहां वे स्वस्थ तरीके से जीवन जीने से वंचित रहते हैं। कई बार इन जानवरों को कठोर और अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता है, जिससे उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

इसके अलावा, श्रमिक शोषण भी एक प्रमुख मुद्दा है। विकासशील देशों में, जहां सस्ते श्रमिक मिलते हैं, वहाँ के किसान और श्रमिकों को कम मजदूरी दी जाती है और उन्हें अक्सर अत्यधिक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। इन श्रमिकों को सामान्य अधिकार भी नहीं मिलते, जैसे कि स्वास्थ्य सुरक्षा, कार्यस्थल की सुरक्षा, और मूलभूत श्रमिक अधिकार। इन समस्याओं को हल करने के लिए नियामक (Regulator) द्वारा बहुत कम कार्रवाई की जाती है, और इसी का फायदा बड़े पूंजीपति वाले लोग उठाते हैं, और जमकर शोषण भी करते हैं। इसलिए अब तक इन श्रमिकों की स्थिति में सुधार नहीं होता दिखाई दे रहा है।

आहार असमानता: विकासशील देशों में खाद्य संकट

दुनिया भर में खाद्य असमानता भी एक प्रमुख समस्या है। कई विकासशील देशों में लोग भ्रष्टाचार, युद्ध और आर्थिक संकट के कारण खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग्रह के एक तिहाई से अधिक लोग पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, और करीब 8 लाख लोग हर साल भोजन के कारण होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते हैं।

इस असमानता का कारण यह है कि कृषि संसाधनों का बड़ा हिस्सा औद्योगिक कृषि और मांस उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जबकि विकासशील देशों में भ्रष्टाचार और नीति की असफलता के कारण खाद्य वितरण में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए, वैश्विक खाद्य नीति में सुधार की आवश्यकता है, ताकि सभी लोगों को उचित और सस्ते भोजन की उपलब्धता हो सके।

उपाय इस प्रकार से किया जा सकता है

खाद्य उद्योग की समस्याएँ सिर्फ पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधित नहीं हैं, बल्कि ये सामाजिक और नैतिक संकट भी उत्पन्न करती हैं। हालांकि, इस स्थिति में सुधार के उपाय मौजूद हैं, जैसे कि सतत कृषि (Sustainable agriculture) को बढ़ावा देना, स्वस्थ आहार को प्राथमिकता देना और नैतिक मांस उत्पादन को बढ़ावा देना। इन समस्याओं का समाधान ग्रह की भलाई के लिए एक वैश्विक प्रयास की आवश्यकता है, जिसमें सभी हिस्सेदारों सरकारों, कंपनियों, और उपभोक्ताओं को अपनी भूमिका निभानी होगी।

https://indiafirst.news/problems-of-the-food-industry-health-sustainability-and-ethics

https://www.iarc.who.int

ये खबर भी पढ़ें।

ये खबर भी पढ़ें।

ये खबर भी पढ़ें।

ये खबर भी पढ़ें।

ये खबर भी पढ़ें।

ये खबर भी पढ़ें।

ये खबर भी पढ़ें।

पिछली खबर: जसप्रीत बुमराह चैंपियंस ट्रॉफी से हुए बाहर भारतीय क्रिकेट टीम को लगा तगड़ा झटका

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताज़ा समाचार

और पढ़ें

प्रमुख समाचार