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“क्या ट्रम्प वास्तव में पनामा कनाल और कनाडा को अमेरिकी क्षेत्र में बदल सकते हैं ?”


द हेग/एम्सटर्डम। डोनाल्ड ट्रम्प ने जबसे अमेरिका का चुनाव जीता है, उसके बाद से ही काफी आक्रामक और विवादित बयान बाजी देना जारी रखा है। सबसे पहले ग्रीनलैंड की मांग उठाना अब ठीक उससे आगे बढ़ते हुए कनाडा और पनामा कनाल पर नजर दौड़ना या कहे की इसे अपनी सूचि में शामिल कर लिया। गौर करने वाली बात यह है की इन सभी देशों के साथ अमेरिका का हित जुड़ा हुआ है चाहे वो रोजगार, व्यापार, आर्थिक, रणनीति या फिर सुरक्षा की दृष्टि से हो। राजनीति और रणनीतिक रूप से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि – ट्रम्प इस बार के कार्यकाल में कई अचंभित करने वाला फैसला ले सकता है जिससे की संयुक्त राज्य अमेरिका का हित हो। इसके लिए चाहे उन्हें किसी से दुश्मनी ही क्यों न मोड़ लेना पड़े। ट्रम्प ने हाल ही में कहा – कनाडा को अमेरिका में शामिल हो जाना चाहिए इसके लिए बकायदा प्रस्ताव दे डाला, वहीं पनामा कनाल को फिर से नियंत्रित में लेने की बात को दोहराया।

ट्रम्प पनामा कनाल को क्यों नियंत्रित में लेना चाहता है

ट्रम्प ने कहा की पनामा की सरकार और वहां की अथॉरिटी अमेरिकन जहाजों पर लदी कंटेनर्स को रोकती है। वहीं दूसरी ओर रूस-चाइना की लदी कंटेनर्स को बिना रोक-टोक आने-जाने दिया जाता है। इससे हमारी कंपनियों को परेशानी हो रही, इसलिए जरूरी हो गया है की पनामा कैनाल पर अमेरिका का नियंत्रण हो। ताकि किसी भी तरह से अमेरिका की अनदेखी न हो सके। यूएसए सरकार और पनामा ऑथोरिटी के अनुसार 40 प्रतिशत अमेरिकी शिपिंग कंटेनर्स इसी जल-मार्ग से होकर गुजरती है। पनामा सरकार या पनामा कनाल ऑथोरिटी को इससे वर्ष 2024 में 5 बिलियन डॉलर्स का राजस्व हुआ जोकि पनामा के कुल जीडीपी के 3 प्रतिशत हिस्सा है। इसका महत्व इतना क्यों है, इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि इजिप्ट (स्वेज़ कनाल) के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा व्यस्त कनाल मार्ग है। हालांकि वर्ष 2023 में पनामा कनाल का सूखना चिंता का विषय जरूर बना। पाठकों को बताते चलें की यह कनाल 82 KM लम्बी मानव निर्मित है। यह कनाल अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण जलमार्ग।

पनामा कनाल का संक्षेप इतिहास –

कनाल निर्माण कार्य पर विचार सबसे पहले सन् 1513 में स्पेनिश खोजकर्ता (Explorer) वास्को नूनेज द बाल्बोआ के द्वारा सुझाया गया। सन् 1881 में फ्रांस के कंस्ट्रक्शन इंजीनियर Ferdinand de Lesseps के नेतृत्व में इसकी शुरुआत हुई। इन्हीं के नेतृत्व में ही 17 नवंबर, 1869 ईस्वी में स्वेज़ कनाल का निर्माण कार्य को पूर्ण किया गया। वित्तीय अवस्था खस्ता होने के कारण 1889 ईस्वी में इस परियोजना को रोक दिया गया। कई रिपोर्ट्स के अनुसार – परियोजना को रोकने का मुख्य कारण वहां पर फैली महामारी का आना, इस महामारी के वजह से करीब 22000 लोगों की मृत्यु हो गई। ज्यादातर लोगों की मृत्यु कई कारणों से हुई जैसे- मलेरिया और पीलिया से पीड़ित होना रहा है। Ferdinand de Lesseps के नेतृत्व में यह परियोजना 8-9 वर्षों तक चला। सन् 1904 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस परियोजना को फ्रांस से अधिग्रहण कर अपने नियंत्रण में ले लिया। पनामा कनाल परियोजना पर कार्य 1904 से 1914 तक चला । इसे 10 वर्षों के अंदर पूर्ण कर लिया गया। इस नहर प्रोजेक्ट में करीब 5600 लोगों ने अपनी जाने, कई कारणों से गंवाई। इसमें कुल 75,000 लोग इस कार्य को दिन-रात एक करके किया। इस प्रोजेक्ट पर कुल 375 मिलियन डॉलर तक खर्चा आया। अमेरिकी सरकार का काफी लंबे समय तक इस पर एकाधिकार रहा। 15 सितंबर,1977 में हुए समझौते के अनुसार 1999 तक इसे पूरी तरह से पनामा सरकार को हस्तांतरण कर दिया जाएगा। इस समझौते को Torrijos-Carter संधि के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि इस समझौते से वहां की जनता खुश होने की जगह और तीव्र गति से पनामा कनाल पर पूर्ण अधिकार की मांग तेज कर दिया। हस्तांतरण करने का कारण पनामानियन (Panamanian) के द्वारा अमेरिका को लेकर विरोध प्रदर्शन का होना है। बढ़ते विरोध को देखते हुए, सन् 1979 को अमेरिका ने निर्णय लिया कि 1999 के बाद पनामा का इस पर पूर्ण रूप से एकाधिकार होगा।

वहीं दूसरी ओर ट्रंप ने कनाडा को 51वें राज्य के तौर पर अमेरिका में शामिल होने का प्रस्ताव देना –

ट्रम्प ने पनामा को ही नहीं बल्कि कनाडा को भी धमकी दे डाला। इससे कनाडा काफी दबाव में आ गया। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो का कहना है, कनाडा धमकियों से डरने वाला नहीं है। मैं इस प्रस्ताव को पूरी से नकारता हूं। कनाडा के लोग कनाडियन पहचान के तौर पर गर्व करते हैं। वहीं ट्रम्प ने इसका कारण भी गिनाया की आखिर क्यों कनाडा को अमेरिका में शामिल हो जाना चाहिए। ट्रंप का मानना है कि कनाडा की सरकार अवैध आप्रवासियों को अमेरिका में घुसपैठ करवाता है इसके साथ ही इसे वह बढ़ावा देता है। इसमें कनाडा की संलिप्तता है अब तक इसमें न कोई ठोस कार्य और न ही किसी तरह का प्रगति हुआ है। इसके साथ ही ड्रग माफियाओं के खिलाफ किसी तरह का कोई भी बंदिश नहीं लगा पाया है। अमेरिका ने कनाडा को सुरक्षा के दृष्टि से खतरा माना है। इसके साथ ही हमारा व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा। धमकी तौर पर कहा है कि कनाडा की सरकार को मेरे प्रस्ताव को मान लेना चाहिए वरना सेना बल के जरिए कनाडा पर कब्जा कर सकते हैं।

अमेरिका में इस बार घुसपैठ, बेरोजगारी और क्राइम चुनावी मुद्दा रहा –

Pew Research Center, सीबीपी (U.S. Customs and Border protection), आईसीई (Immigration and customs enforcement) और गृह-सुरक्षा समिति (Homeland security) जैसी कई संस्थाओं के अनुसार – अमेरिका में अवैध आप्रवासियों की संख्या 2021 में 10.5 मिलियन से बढ़ करके यह आंकड़ा 2022 में 11 मिलियन को पार कर गया। जबकि 2024 में 700,000 लाख से अधिक लोगों को निष्कासन और वापसी का रिपोर्ट दिया गया जोकि 2010 के बाद सबसे अधिक है। वहीं आपराधिक गतिविधियों में 650,000 अधिक लोगों की संलिप्तता पाया गया जो किसी न किसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल रहा हो। 15,000 व्यक्तियों पर हत्या का दोषी या फिर आरोप लगा, यौन-उत्पीडन के मामले 20,000 और हमले का आरोप 105,000 है। उत्तरी सीमा पर एनकाउंटर 2024 में 2021 के तुलना में 1240 प्रतिशत तक बढ़ गया। वर्ल्ड बैंक के अनुसार अमेरिका में नवम्बर 2024 तक बेरोज़गारी दर 4.2 प्रतिशत है। 2023 के तुलना में 0.5 प्रतिशत से अधिक है। US CENSUS BUREAU के अनुसार -अमेरिका में कुल 36.8 मिलियन लोग गरीब रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन करने को मजबूर हैं हालांकि 2023 में इसमे 0.4 फीसदी की मामूली सुधार जरूर देखा गया। ट्रम्प ने चुनाव के दौरान वादा किया है, कि वह दुनिया का सबसे बड़ा अभियान चलाएगा और गैर-कानूनी तरीके से रह रहे, अवैध आप्रवासियों को पहचान कर अमेरिका से बाहर खदेड़ा जाएगा।

कनाडा और पनामा कनाल पर दब – दबा बनाए रखना –

ट्रम्प की योजना कनाडा और पनामा को अपने पाले में करना है। इसके लिए वह हर तरह की तीर छोड़ने से पीछे नहीं हटेगा। इसी बीच पनामा के राष्ट्रपति Jose Raul Maulino ने पुरे मामले को लेकर बयान दिया कि वह किसी भी तरह की धमकी से पनामानियन डरने वालो में से नहीं है। पनामा कनाल को लेकरके ट्रम्प से किसी भी तरह की बात-चीत से मना कर दिया। साफ शब्दों में कह दिया की पनामा को अब कोई भी पनामानियन से छीन नहीं सकता। इस कनाल के प्रत्येक वर्ग मीटर पर सिर्फ हमारा हक है और रहेगा। इसके साथ ही अमेरिकी जहाजों पर लगने वाली ट्रांजिट टोल में किसी भी तरह की छूट देने से साफ इनकार कर दिया। जस्टिन ट्रुडो के बाद, कैबिनेट मंत्रिमंडल में शामिल सभी ने इस विषय पर कहा की हमें जवाबी कार्यवाही के लिए तैयार रहना चाहिए। ट्रम्प को रोकना मुश्किल सा लग रहा है इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है की NATO देशों पर अब अधिक खर्च करने का दबाव होगा क्यूंकि जीडीपी का 5 प्रतिशत हिस्सा रक्षा बजट पर खर्च करने को कहा। लगता है कि इसकी शुरुआत सबसे पहले कनाडा से हो सकता है।

कनाडा पर टैरिफ बढ़ने का खतरा –

ट्रम्प ने कहा की अगर कनाडा हमारी प्रस्ताव पर अमल नहीं किया तो फिर कनाडा पर 25 प्रतिशत या फिर उससे ज्यादा की टैरिफ लगाया जा सकता है। इसका ठीकरा कनाडा सरकार पर मड़ा। वर्ष 2023 में दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार कुल 923 बिलियन डॉलर की रही, इसमें यू .एस.ए की ओर से 441 बिलियन डॉलर का निर्यात, जबकि कनाडा की ओर से 482 बिलियन डॉलर का आयात किया गया। USA का कनाडा के साथ 41 बिलियन डॉलर का व्यपार घाटा हुआ जिसे वह पाटना चाहता। दोनों देशों के बीच 3.6 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुएं एवं सेवाएं प्रतिदिन एक-दसूरे की सीमा पार करती है। व्यपार घाटा को हल करने के लिए, टैरिफ लगाने पर विचार कर सकता है। अगर देखा जाए तो आमतौर पर इस तरह का शुल्क किसी दूसरे देश पर तभी लगाया जाता है जब किसी देश की अर्थव्यवस्था को अन्य देश की वस्तुओं या सेवाओं से खतरा उत्पन हो और अपने देश की व्यापार साम्राज्य को बचाना या फिर वस्तुओं की रक्षा करना हो। राजनितिक विशेषज्ञों के अनुसार ट्रेड वॉर होना तय है इसके लिए सभी देशों को तैयार रहना चाहिए। ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में सबसे ज्यादा नुकसान चीन को उठाना पड़ा। इस बार इसका दायरा बढ़ सकता है। इस ट्रेड वॉर की सूची में यूरोपीय संघ, कनाडा, पनामा, चाइना, रूस, इरान,ऑस्ट्रेलिया और भारत इत्यादि देशों का नाम शामिल हो सकता है।

लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में चाइना का बढ़ता प्रभाव –

अगर अमेरिका का ठीक से विश्लेषण या अध्ययन किया जाए तो पता चलता है की ट्रम्प का इस तरह बयान देना एक दूरदर्शी सोच को दिखाता है। पिछले कुछ दिनों में ट्रम्प द्वारा दिए गए बयानों की चर्चा, पुरे विश्व के समाचार-पत्रों, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में छाया रहा। यह विषय काफी ट्रेंडिंग में भी रहा। इन मुद्दो को मीडिया ने जोर-शोर से उठाया और लोगों तक पहुँचाया, बात चाहे महत्वपूर्ण क्षेत्र ग्रीनलैंड, कनाडा या पनामा कनाल पर ही क्यों न हो। वहीं देखा जाए तो अमेरिका को सबसे ज्यादा फिक्र चाइना की बढ़ती आर्थिक-शक्ति से है। चीन ने जिस रफ्तार के साथ पुरे लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में अपने कारोबार का जाल फैलाया है इससे अमेरिका घबराया हुआ है। दुनियाभर के सरकारी संस्थान, शोध संस्थान और नॉन – प्रॉफिट एजेंसियों द्वारा कई हैरान करने वाली रिपोर्ट्स और तथ्य प्रकाशित किया गया हैं। यहां तक की अमेरिका के शोध संस्थानों द्वारा अचंभित करने वाली रिपोर्ट्स जारी किया गया, वहीं वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थानों ने इस पर पूरी विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित किया है। इन सबसे हट करके सीएफआर ने चाइना सरकार के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया की वर्ष 2000 में लैटिन अमेरिका में 2 प्रतिशत से भी कम गति से पांव पसारा, ठीक अगले 8 सालों में इसकी रप्तार रॉकेट की तरह 31 प्रतिशत वार्षिक तेज गति से आगे बढ़ी। इन देशों में चीन का व्यापार 2021 में 450 बिलियन डॉलर के पार रहा। चाइना सरकार का लक्ष्य 2035 तक 700 बिलियन डॉलर के आंकड़े को प्राप्त करना है। इसके लिए अलग से LAC (लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई) नामक संगठन भी बनाया है जिसका काम इन देशों पर चाइना का कारोबार बढ़ाने का जिम्मा दिया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा बिज़नस सहयोगी के तोर पर उभरा है।

चाइना अमेरिका के लिए इन क्षेत्रों में चुनौती बनकर उभरा –

Data Source – Boston University Research and Education Center

चीन सरकार का लक्ष्य लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में अमेरिका से सिर्फ आगे निकलने तक ही सीमित नहीं है बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना और सुरक्षा में सेंधमारी करना भी शामिल है। बोस्टन विश्वविद्यालय वैश्विक विकास नीति केंद्र जैसे कई संस्थानों के अनुसार 22 देशों को कर्ज मुहैया कराया गया है और कर्ज के जाल में फंसाया। 2005 से लेकरके अब तक 138 बिलियन डॉलर का कर्ज मुहैया करवाया है। इसके कारण कई लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई देश कर्ज के जाल में फंसा हुआ है। वेनेज़ुएला 60 अरब डॉलर, इकवाडोर 5 अरब डॉलर, ब्राज़ील 3 अरब डॉलर और अर्जेंटीना का उल्लेख नहीं किया गया। चाइना के बोझ तले दबे हुए कैरिबियाई देशों का हाल – त्रिनिदाद और टोबैगो पर 2.6 बिलियन डॉलर, सूरीनाम पर सकल घरेलू उत्पाद का 14.6 प्रतिशत बकाया है , गुयाना पर 150 मिलियन डॉलर और जमैका पर सकल घरेलू उत्पाद का 4 प्रतिशत बकाया। वहीं विभिन्न कैरिबियाई देशों ने चीनी निवेश के रूप में अनुमानित 8.25 बिलियन डॉलर का हिस्सा प्राप्त किया है। कर्ज न चूका पाने के वजह से चाइना सरकार की स्वामित्व (COSCO) और निजी कंपनियों ने अधिकतम बोली लगा करके अपने अधीन कर लिया। पेरू में 3.5 अरब डॉलर की परियोजना को कॉस्को द्वारा चलाया जा रहा, पनामा – पनामा कनाल (पोर्ट ऑफ कोलोन और पोर्ट ऑफ बाल्बोआ) के दोनों छोर की ओर चीनी कंपनियों का काफी निवेश है, ब्राज़ील के दूसरे सबसे बड़े बंदरगाह परानागुआ के बंदरगाह का संचालन (हिना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग कंपनी) 90 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ करती है, इसके साथ ही बहामास, जमैका जैसे लगभग 40 से ज्यादा पोर्टो पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में चाइना का कब्ज़ा हो चूका है। विषेशज्ञों ने चेताया है की इन पोर्टों से सेना की तैनाती और ख़ुफ़िया एकत्रित करने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। इन्हीं कारणों से ट्रम्प इन देशों पर अपना नियंत्रण चाहता है ताकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के साथ ही अमेरिका के हित की अनदेखी न हो सके, न ही कमजोर किया जा सके।

The Panama Canal Makes Direct Contributions to the National Treasury –

https://indiafirst.news/could-trump-really-turn-panama-canal-and-canada-into-u-s-territory

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