पटना। बिहार का नाम आते ही शिक्षा और सिविल सर्विसेज की तैयारी की एक मजबूत परंपरा का ख्याल आता है। खासकर IAS बनने का क्रेज यहां दशकों से कायम है। बिहार ने देश को कई प्रतिभाशाली IAS अधिकारी दिए हैं और आज भी यह परंपरा जारी है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इस रुझान में उतार-चढ़ाव भी देखने को मिले हैं। सवाल उठता है कि आखिर बिहार में UPSC का इतना जुनून क्यों है? और हाल के वर्षों में इसमें गिरावट क्यों आई? बिहार दिवस के मौके पर इस खास रिपोर्ट में पढ़िए IAS की फैक्ट्री कहे जाने वाले बिहार की पूरी कहानी।
IAS की फैक्ट्री: बनगांव और बिहार की परंपरा
बिहार के सहरसा जिले का एक छोटा सा गांव बनगांव अपनी अनूठी पहचान रखता है। इसे ‘IAS फैक्ट्री’ के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां से अब तक 60 से ज्यादा IAS और IPS अधिकारी निकल चुके हैं। इस गांव की सफलता का श्रेय 1950 के दशक के प्रिंसिपल लक्ष्मेश्वर झा को जाता है, जिन्होंने यहां के छात्रों को सिविल सर्विसेज की तरफ प्रेरित किया। उनका कहना था—”अगर मेहनत करनी है तो देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा के लिए करो।”
इसी तरह, बिहार के सीवान जिले के आमिर सुबहानी ने 1987 में यह मिथक तोड़ा कि सिर्फ दिल्ली जाकर ही IAS बना जा सकता है। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और UPSC में टॉप किया। इसके बाद पटना यूनिवर्सिटी और बिहार के अन्य संस्थानों से भी बड़ी संख्या में छात्र IAS बनने लगे।
बिहार में IAS बनने का जुनून क्यों?
1. शोहरत और सम्मान का आकर्षण
बिहार में IAS बनने का मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी पाना नहीं, बल्कि समाज में एक विशिष्ट पहचान बनाना है। IAS बनने के बाद मिलने वाला रुतबा और जनसेवा का अवसर इसे और भी खास बनाता है। पहले के दौर में यह एकमात्र ऐसा विकल्प था, जहां सामाजिक प्रतिष्ठा और बड़े बदलाव की संभावना एक साथ मिलती थी।
2. सीमित करियर विकल्प
1980 और 90 के दशक में बिहार में IT सेक्टर का विकास नहीं हुआ था, मैनेजमेंट की पढ़ाई का भी उतना चलन नहीं था। मेडिकल और इंजीनियरिंग की सरकारी सीटें बेहद कम थीं, और निजी संस्थानों का अभाव था। ऐसे में छात्रों के पास IAS या बैंकिंग सेक्टर ही दो प्रमुख विकल्प बचते थे।
IAS बनने का स्वर्णिम दौर और गिरावट
1987-1996: बिहार के लिए गोल्डन पीरियड
इस दौर में UPSC ने 982 IAS अधिकारियों का चयन किया, जिसमें अकेले बिहार से 159 अधिकारी चुने गए। इस समय बिहार से IAS बनने की दर 16.19% थी। 1987 के एक बैच में तो हर तीसरा IAS बिहारी था।
1997-2006: गिरावट का दौर
राबड़ी देवी शासनकाल के दौरान बिहार से IAS बनने वालों की संख्या में गिरावट आई। इस दौरान देशभर से 1,588 IAS अधिकारी चुने गए, जिनमें बिहार से केवल 108 (6.80%) सफल हुए।
2007-2016: सुधार का दौर
इस दौरान देशभर से 1,664 IAS अधिकारियों का चयन हुआ, जिनमें बिहार से 125 (7.51%) थे।
2011: CSAT लागू होने से दिक्कतें बढ़ीं
UPSC ने 2011 में Civil Services Aptitude Test (CSAT) लागू किया, जिसमें गणित और तर्कशक्ति के प्रश्न बढ़ गए। इससे बिहारी छात्रों की सफलता दर पर असर पड़ा। हालांकि, कुछ वर्षों में छात्र इस पैटर्न के अनुकूल हो गए और फिर से सफलता की राह पर लौट आए।
2017-2023: नए दौर में वापसी
इस अवधि में देशभर से 1,179 IAS अधिकारी चुने गए, जिनमें 94 (12.54%) बिहारी थे। यह दर्शाता है कि बिहार के छात्र फिर से सिविल सेवा में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।
चुनौतियाँ: बिहार के छात्रों को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है?
1. पटना यूनिवर्सिटी में UPSC गाइडेंस का अभाव
बिहार के मुख्य सचिव रहे आमिर सुबहानी कहते हैं, “मेरे समय में पटना यूनिवर्सिटी में UPSC गाइडेंस सेल था, जो अब पूरी तरह खत्म हो गया है।” इससे छात्रों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल रहा, और वे दिल्ली या अन्य शहरों का रुख कर रहे हैं।
2. बढ़ती प्रतियोगिता और संसाधनों की कमी
आज IAS परीक्षा में सफल होने के लिए सिर्फ मेहनत ही नहीं, बल्कि सही गाइडेंस और कोचिंग की भी जरूरत है। बिहार में अच्छी कोचिंग सुविधाओं की कमी के कारण कई छात्र असफल हो जाते हैं।
3. सरकारी प्रयासों की कमी
राज्य सरकार द्वारा UPSC की तैयारी के लिए कोई मजबूत योजना नहीं बनाई गई। दिल्ली और अन्य राज्यों में सरकारी संस्थानों से छात्रों को फ्री कोचिंग और गाइडेंस दिया जाता है, लेकिन बिहार में ऐसा कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ।
बिहार की IAS परंपरा को बचाने की जरूरत
बिहार में IAS बनने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। हालांकि, आज यह पहले जितनी प्रभावी नहीं रही। 1980-90 के दशक में जहां बिहार का दबदबा था, वहीं आज इसकी सफलता दर में थोड़ी गिरावट आई है। इसका मुख्य कारण गाइडेंस की कमी, CSAT जैसी चुनौतियाँ, और छात्रों का दूसरे राज्यों में पलायन है। अगर सरकार इस दिशा में प्रयास करे, तो बिहार फिर से UPSC की टॉप लिस्ट में आ सकता है।
बिहार के युवा आज भी IAS बनने का सपना देखते हैं, और सही मार्गदर्शन, संसाधनों और सरकारी सहयोग से यह परंपरा और भी मजबूत हो सकती है।
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