रांची। झारखंड के बोकारो जिले के तेतुलिया मौजा में 74.38 एकड़ वन भूमि के घोटाले की परतें अब तेजी से खुल रही हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) की मनी लांड्रिंग जांच में ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जो यह साबित करते हैं कि यह महज ज़मीन हड़पने की साज़िश नहीं थी, बल्कि सिस्टम के भीतर बैठे लोगों की मिलीभगत से चलाया गया एक संगठित फर्जीवाड़ा था।
राजस्व उप निरीक्षक की रिपोर्ट को किया नजरअंदाज़
जांच में सामने आया है कि राजस्व उप निरीक्षक की स्पष्ट अनुशंसा को दबा दिया गया। उन्होंने साफ कहा था कि यह भूमि वन विभाग की है और किसी भी प्रकार के निर्णय से पहले वन विभाग से नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लिया जाना अनिवार्य है। लेकिन इस रिपोर्ट को न केवल दरकिनार किया गया, बल्कि तत्कालीन अंचलाधिकारी (CO) ने इसे पूरी तरह बदलकर अपनी रिपोर्ट बना दी।
वन विभाग की मंज़ूरी नहीं, लेकिन ज़मीन बिक गई!
ईडी को जांच में ऐसे दस्तावेज मिले हैं जो यह बताते हैं कि बिना वन विभाग की अनुमति लिए ही जमीन की खरीद-बिक्री कर दी गई। इस काम के लिए फर्जी कागजात बनाए गए और उन पर सरकारी मुहर की तरह दस्तावेज तैयार कर दिए गए।
उपायुक्त को भी रखा गया अंधेरे में

घोटाले की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बोकारो के उपायुक्त तक को अंधेरे में रखकर जमीन को ‘प्रतिबंधित सूची’ से बाहर कर दिया गया। उपायुक्त ने इस भूमि पर निर्णय लेने से पहले 11 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी थी। लेकिन अंचलाधिकारी ने राजस्व उप निरीक्षक की सिफारिश को फिर से नजरअंदाज करते हुए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।
22 अप्रैल की छापेमारी में कई सुराग
ईडी ने 22 अप्रैल को झारखंड और बिहार के 16 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की थी। इस दौरान फर्जी दस्तावेज, लेनदेन की रसीदें और डिजिटल सबूत बरामद हुए, जिनके आधार पर यह पूरी साजिश सामने आई है। जांच एजेंसी अब इन साक्ष्यों का विश्लेषण और कानूनी सत्यापन कर रही है।
अगली कड़ी में कौन?
इस घोटाले की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे नए चेहरे बेनकाब हो रहे हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि कई वरिष्ठ अधिकारियों और दलालों की भूमिका की परतें जल्द ही उजागर होंगी।
यह मामला सिर्फ ज़मीन का नहीं, सिस्टम में जड़े भ्रष्टाचार की जटिलता का एक जीवंत उदाहरण है- जिसकी तह तक पहुंचना अब ईडी की प्राथमिकता बन गई है।
https://indiafirst.news/bokaro-forest-land-scam



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