नई दिल्ली। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक बार फिर आमने-सामने हैं। टैरिफ़ को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तकरार नई ऊंचाई पर पहुंच गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के जवाब में चीन ने सख्त लहजे में कहा है कि वह किसी भी तरह की ‘ब्लैकमेलिंग’ को बर्दाश्त नहीं करेगा और अगर ज़रूरत पड़ी, तो अंत तक लड़ाई जारी रखेगा।
दरअसल, सोमवार को व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रंप ने दो टूक कहा कि अगर चीन ने अमेरिका के सामान पर लगाए गए 34% आयात शुल्क को वापस नहीं लिया, तो वह चीन से आने वाले उत्पादों पर 50% अतिरिक्त टैरिफ़ थोप देंगे।
इस बयान के बाद चीन का वाणिज्य मंत्रालय तुरंत हरकत में आया और तीखी प्रतिक्रिया दी। मंत्रालय ने साफ शब्दों में कहा, “अमेरिकी दबाव और धमकियों के आगे हम नहीं झुकेंगे। टैरिफ़ की यह धमकी एक के बाद एक ग़लती है, और हम इसका डटकर जवाब देंगे।”
ब्लैकमेल नहीं, बातचीत चाहिए: चीन
चीन ने यह भी स्पष्ट किया है कि मसले के समाधान के लिए ज़रूरत है कि दोनों देश टैरिफ़ की योजनाओं को स्थगित करें और वार्ता की मेज़ पर वापस लौटें। लेकिन अमेरिका के आक्रामक रुख के बीच इस सलाह की गुंजाइश बेहद कम दिख रही है।
चीन के सरकारी अख़बार पीपल्स डेली ने भी ट्रंप की रणनीति को आड़े हाथों लिया। संपादकीय में लिखा गया, “ट्रंप का ट्रेड वॉर पिछले दो वर्षों से जारी है, लेकिन इससे अमेरिका को क्या हासिल हुआ? चीन की अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है, जबकि अमेरिका अपने ट्रेड डेफ़िसिट को नियंत्रित करने में असफल रहा है।”
104% तक महंगे हो सकते हैं चीनी उत्पाद
अगर ट्रंप अपने वादे के मुताबिक़ 50% अतिरिक्त टैरिफ़ लागू करते हैं, तो इसका असर अमेरिकी बाज़ार पर साफ दिखेगा। विश्लेषकों के अनुसार, चीन से अमेरिका आने वाला कुछ सामान 104% तक महंगा हो सकता है। इसका सीधा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा और महंगाई बढ़ सकती है।
क्या अकेला पड़ सकता है अमेरिका?
बीजिंग में स्थित बीबीसी संवाददाता स्टीफ़न मैक्डोनाल्ड मानते हैं कि चीन के सख्त रुख से उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहानुभूति और समर्थन मिल सकता है। “चीन अब अन्य व्यापारिक साझेदारों की ओर देख रहा है, जिससे वह अमेरिकी घाटे की भरपाई करने की कोशिश करेगा,” उन्होंने कहा।
चीन की भी हालत पतली
हालांकि, खुद चीन की अर्थव्यवस्था भी इस समय चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़र रही है। घरेलू मांग में गिरावट है, बेरोज़गारी दर बढ़ रही है और विकास दर कई सालों से सुस्त है। ऐसे में ट्रेड वॉर का लंबा खिंचाव दोनों देशों के लिए महंगा सौदा साबित हो सकता है।
आख़िर समाधान क्या?
ट्रेड वॉर में अब तक कई राउंड हो चुके हैं, लेकिन समाधान नहीं निकला। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर दोनों देश जल्द बातचीत की राह पर नहीं लौटे, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था भी इसकी चपेट में आ सकती है।
फिलहाल चीन और अमेरिका की ये टैरिफ़ जंग सिर्फ दो देशों का मामला नहीं रह गई है, बल्कि ये वैश्विक बाज़ार की स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है।
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