IndiaFirst.News Desk: 31 दिसंबर 2024 की मध्य रात्रि को, यूक्रेन ने अचानक रूस की सरकारी स्वामित्व वाली ऊर्जा कंपनी गाज़प्रोम (Gazprom) के साथ 5 साल के लिए हुए गैस आपूर्ति समझौते को रद्द करने का ऐलान कर दिया। यह निर्णय यूरोप के ऊर्जा बाजार में हलचल मचाने वाला साबित हो सकता है, क्योंकि गाज़प्रोम के माध्यम से ही यूक्रेन के पाइपलाइनों से कई यूरोपीय देशों को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति होती है।
समझौते का रद्द होना और उसकी पृष्ठभूमि
यूक्रेन और गाज़प्रोम के बीच 2019 में यह समझौता हुआ था, जिसके तहत रूस की प्राकृतिक गैस को यूक्रेन के पाइपलाइनों के माध्यम से ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया, हंगरी, चेक गणराज्य और माल्डोवा जैसे देशों तक पहुंचाया जाता था। यह समझौता यूक्रेन के लिए न केवल ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न था, बल्कि इसे ट्रांजिट फीस के रूप में बड़ी आर्थिक सहायता भी मिलती थी।
हालांकि, रूस-यूक्रेन संघर्ष और भू-राजनीतिक तनाव के चलते इस समझौते के भविष्य पर लंबे समय से सवाल खड़े हो रहे थे। यूक्रेन का कहना है कि उसने यह कदम अपनी “राष्ट्रीय सुरक्षा” और “ऊर्जा स्वतंत्रता” को ध्यान में रखते हुए उठाया है।

गैस आपूर्ति समझौता रद्द होने से यूरोप पर संभावित प्रभाव
गैस आपूर्ति में इस अचानक हुए व्यवधान का सीधा असर ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया, हंगरी, चेक रिपब्लिक और माल्डोवा जैसे देशों पर पड़ सकता है, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर गाज़प्रोम पर निर्भर हैं।
ऑस्ट्रिया और स्लोवाकिया का रूस से गैस पर अत्यधिक निर्भर होना
ऑस्ट्रिया और स्लोवाकिया, जो रूस से आयातित गैस पर 80% से अधिक निर्भर हैं, अब अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में जुट गए हैं। दोनों देशों की सरकारों ने आपातकालीन बैठकें बुलाकर इस संकट से निपटने की योजना तैयार करने का निर्देश दिया है।

हंगरी और चेक गणराज्य का यूरोपीय संघ से त्वरित हस्तक्षेप की अपील
हंगरी और चेक गणराज्य के लिए यह संकट और भी गहरा हो सकता है। हंगरी, जो रूस के साथ घनिष्ठ ऊर्जा संबंध रखता है, ने इस कदम को “गैर-उत्तरदायी” बताया है। वहीं, चेक गणराज्य ने यूरोपीय संघ से इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप की अपील की है।
माल्डोवा ने आपातकालीन स्थिति घोषित की
माल्डोवा पहले से ही ऊर्जा संकट का सामना कर रहा था, और इस निर्णय ने उसकी समस्याओं को और बढ़ा दिया है। माल्डोवा ने आपातकालीन स्थिति घोषित कर दी है और यूरोपीय संघ से समर्थन की मांग की है।

रूस और गाज़प्रोम की प्रतिक्रिया
गाज़प्रोम ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना करते हुए इसे “अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन” बताया है। कंपनी ने यूक्रेन पर “राजनीतिक उद्देश्यों” के लिए ऊर्जा आपूर्ति को हथियार बनाने का आरोप लगाया है। रूस की सरकार ने भी यूक्रेन के इस कदम को “अनावश्यक उत्तेजना” करार दिया है और कहा है कि इससे यूरोपीय ऊर्जा बाजार में अस्थिरता बढ़ेगी।
यूरोपीय संघ और नाटो की भूमिका
यूरोपीय संघ और नाटो इस संकट को लेकर चिंतित हैं। यूरोपीय संघ के ऊर्जा आयुक्त ने कहा कि “यह निर्णय पूरे यूरोप के लिए चेतावनी है कि ऊर्जा स्वतंत्रता और विविधीकरण कितना महत्वपूर्ण है।” उन्होंने रूस और यूक्रेन दोनों से बातचीत के माध्यम से समाधान निकालने का आग्रह किया।
नाटो ने इस मामले को भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा है। संगठन ने रूस को “ऊर्जा हथियार” के रूप में उपयोग करने से बचने की चेतावनी दी है और यूक्रेन से यूरोपीय भागीदारों के साथ सहयोग बनाए रखने की अपील की है।

यूक्रेन का तर्क और भविष्य की चुनौतियां
यूक्रेन का कहना है कि यह निर्णय उसकी संप्रभुता और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाया गया एक आवश्यक कदम है। यूक्रेन अब वैकल्पिक गैस आपूर्ति स्रोतों की तलाश में जुटा है और अपने पावर सेक्टर को पुनर्गठित करने की योजना बना रहा है। हालांकि, यह कदम यूक्रेन के लिए भी जोखिमभरा साबित हो सकता है, क्योंकि इससे उसे ट्रांजिट फीस का बड़ा नुकसान होगा और यूरोपीय साझेदारों के साथ उसके संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
यूक्रेन द्वारा गाज़प्रोम के साथ गैस आपूर्ति समझौते को रद्द करने का निर्णय यूरोप के ऊर्जा परिदृश्य में बड़ी उथल-पुथल ला सकता है। यह न केवल ऊर्जा आपूर्ति संकट को जन्म दे सकता है, बल्कि भू-राजनीतिक तनाव को भी बढ़ा सकता है।
यूरोपीय संघ, नाटो, और अन्य वैश्विक शक्तियों के लिए यह संकट ऊर्जा सुरक्षा को लेकर पुनर्विचार करने का अवसर हो सकता है। वहीं, आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यूक्रेन, रूस, और यूरोपीय देश इस समस्या को हल करने के लिए कैसे कदम उठाते हैं।
https://indiafirst.news/crisis-looms-on-energy-supply-for-europe
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