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गगन गिल को ‘मैं जब तक आयी बाहर’ हिन्दी कविता के लिए 2024 का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा


Sahitya Akademi Award: नई दिल्ली। वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार-2024 की घोषणा कर दी गई है। ये पुरस्कार देश भर के 20 भाषाओं के लिए दिए जाते हैं। हिंदी साहित्य पुरस्कार से इस साल हिंदी के लिए कवयित्री गगन गिल को सम्मानित किया गया। बता दें कि गगन गिल की कृति ‘मैं जब तक आई बाहर’ के लिए उनको इस पुरस्कार के नवाजा गया। गगन गिल हिंदी की प्रतिष्ठित कवयित्री हैं। उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उन्होंने विपुल अनुवाद भी किया है। अंग्रेजी साहित्य में एमए करने के बाद गगन गिल ने पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया लेकिन पत्रकारिता को छोड़कर वो पूर्णकालिक लेखक हो गईं।

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता में आयोजित कार्यकारी मंडल की बैठक में 21 भाषाओं के लिए पुरस्कार की घोषणा की गई। हिंदी के लिए गगन गिल और अंग्रेजी के लिए ईस्टरिन किरे को पुरस्कार मिलेगा। इस साल 21 भाषाओं के लेखकों को सम्मानित किया जाएगा।

पुरस्कार के रूप में लेखकों को शॉल, श्रीफल और एक लाख रुपये की राशि दी जाएगी। यह कार्यक्रम दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में 8 मार्च 2025 को आयोजित किया जाएगा।

गगन गिल की कुछ यादगार कविताएं..

प्रेम में लड़की शोक करती है
शोक में लड़की प्रेम करती है

प्रेम में लड़की नाम रखती है
नाम जिसका रखती है

माया है वह
माया, जिसकी इच्छा उसकी नींद में चलती है,

कभी वह इस माया को
पुकारती है बाबा कहकर

कभी कहती है
मनु, ओ मनु

कभी सोचने लगती है
कोई बिल्कुल नया नाम!

जानती है वह
चाहे किसी भी नाम से पुकार ले उसे

बचेगा हर नाम हवा का आकार भर
इसी शोक से बचने के लिए

प्रेम करती है लड़की
प्रेम करते हुए लड़की सोचती है,

वह सुरक्षित है विस्मृति में,
लालसा में, स्वार्थ में

याद नहीं रहता उसे
कि लालसा है जिसके लिए

ढेर है वह
मुट्ठी-भर हड्डियों का,

हड्डियाँ, जो निकल आती हैं
बिजली की भट्ठी से बाहर

सिर्फ़ पाँच मिनट बाद
प्रेम करते हुए लड़की कुछ भी नहीं सोचती

बस अपनी भारी साँस
ले जाती है उसके सीने के पास

सूँघती है उसकी मांस, मज्जा
और आत्मा?

यहीं कहीं तो थी उसकी आत्मा?
कब छू पाएगी उसे वह

इस मुट्ठी भर कंकाल के भीतर?
इसी शोक में लड़की

प्रेम करती है
वहशत की हद तक

हर बार उसे लगता है
अब के दीखने बंद हो जाएँगे

उसे ज़िंदा आदमियों के जलते कंकाल,
अबके वह जिसे छुएगी

वह सुख होगा—
ख़ालिस सुख

हर बार वह डरकर
आदमी को जकड़ती है,

हर बार वह उससे
किसी जलती भट्ठी में छूट जाता है

शोक में लड़की प्रेम करती है
ऐसा प्रेम, ख़ुदा जिससे

दुश्मनों को भी बचाए!
स्रोत :

पुस्तक : एक दिन लौटेगी लड़की (पृष्ठ 37) रचनाकार : गगन गिल प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन संस्करण : 1989

‘मैं जब तक आई बाहर’ के लिए उनको इस पुरस्कार के नवाजा गया

कविता गगन गिल की..

मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने

बदल चुका था
रंग दुनिया का

अर्थ भाषा का
मंत्र और जप का

ध्यान और प्रार्थना का
कोई बंद कर गया था

बाहर से
देवताओं की कोठरियाँ

अब वे खुलने में न आती थीं
ताले पड़े थे तमाम शहर के

दिलों पर
होंठों पर

आँखें ढँक चुकी थीं
नामालूम झिल्लियों से

सुनाई कुछ पड़ता न था
मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने
रंग हो चुका था लाल

आसमान का

यह कोई युद्ध का मैदान था
चले जा रही थी

जिसमें मैं
लाल रोशनी में

शाम में
मैं इतनी देर में आई बाहर

कि योद्धा हो चुके थे
अदृश्य

शहीद
युद्ध भी हो चुका था

अदृश्य
हालाँकि

लड़ा जा रहा था
अब भी

सब ओर
कहाँ पड़ रहा था

मेरा पैर
चीख़ आती थी

किधर से
पता कुछ चलता न था

मैं जब तक आई बाहर
ख़ाली हो चुके थे मेरे हाथ

न कहीं पट्टी
न मरहम

सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था
वही अब तक याद था

किसी ने मुझे
वह दिया न था

मैंने ख़ुद ही
खोज निकाला था उसे

एक दिन
अपने कंठ की गूँ-गूँ में से

चाहिए थी बस मुझे
तिनका भर कुशा

जुड़े हुए मेरे हाथ
ध्यान

प्रार्थना
सर्वम शांति के लिए

मंत्र का अर्थ मगर अब
वही न था

मंत्र किसी काम का न था
मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने
बदल चुका था मर्म

भाषा का

स्रोत:

पुस्तक : मैं जब तक आई बाहर (पृष्ठ 151) रचनाकार : गगन गिल प्रकाशन : वाणी प्रकाशन संस्करण : 2018

https://indiafirst.news/gagan-gill-honored-with-sahitya-akademi-award

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