नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भारतीय राजनीति के एक अनोखे और मजबूत व्यक्तित्व थे। वह न केवल अपने कड़े अनुशासन और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे, बल्कि अपनी अलहदा जीवनशैली और स्वमूत्रपान की वकालत के कारण भी चर्चाओं में बने रहे। उनके जन्म की तारीख 29 फरवरी थी, जो चार साल में एक बार आती है, इसलिए वह जीवन में केवल 24 बार ही अपना असली जन्मदिन मना सके।
दो बार प्रधानमंत्री बनने से चूके, 81 साल में बनी किस्मत
मोरारजी देसाई नेहरू युग के प्रमुख नेताओं में से एक थे और दो बार प्रधानमंत्री बनने के बेहद करीब पहुंचे, लेकिन सफल नहीं हो पाए। 1964 में जब पंडित जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ तो वह पीएम पद के दावेदार थे, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री को यह पद मिला। 1966 में शास्त्री जी के निधन के बाद फिर वह प्रबल दावेदार बने, लेकिन इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया गया।
इंदिरा गांधी के साथ उनका हमेशा टकराव बना रहा। 1975 में आपातकाल के दौरान उन्हें जेल भेज दिया गया, लेकिन जब 1977 में जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हराया तो 81 साल की उम्र में वह भारत के चौथे प्रधानमंत्री बने। इस तरह, वह सबसे ज्यादा उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले पहले और एकमात्र भारतीय नेता रहे।
स्वमूत्रपान: उनकी लंबी उम्र का राज?

मोरारजी देसाई की जीवनशैली हमेशा चर्चा में रही। वह स्वमूत्रपान (यूरिन थेरेपी) के कट्टर समर्थक थे और इसे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानते थे। उन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि वह खुद भी इसका पालन करते थे और इसे एक प्राकृतिक औषधि मानते थे। हालांकि, इस पर कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन वह 99 साल की लंबी उम्र तक जीवित रहे, जिससे यह अटकलें लगाई जाती रहीं कि उनकी सेहत का रहस्य कहीं इसी में तो नहीं था।
इंदिरा गांधी से कभी नहीं बनी, लेकिन जेल से लौटकर पीएम बने

मोरारजी देसाई और इंदिरा गांधी के बीच रिश्ते कभी सामान्य नहीं रहे। 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तो मोरारजी उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाए गए, लेकिन वह इस फैसले से नाराज थे। उन्होंने कई बार इंदिरा गांधी के कामों में रुकावट डालने की कोशिश की। इंदिरा गांधी ने जब 1969 में कांग्रेस को विभाजित किया, तो मोरारजी ने उनके खिलाफ कांग्रेस (ओ) गुट का समर्थन किया।
आपातकाल (1975-77) के दौरान इंदिरा गांधी ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लेकिन जब 1977 में चुनाव हुए, तो जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हराकर सत्ता हासिल की और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
जनता सरकार का पतन और उनका इस्तीफा
मोरारजी देसाई की सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल पाई। उनकी पार्टी में चौधरी चरण सिंह और जगजीवन राम जैसे नेताओं से लगातार मतभेद चलते रहे। 1979 में उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
सादगी और ईमानदारी की मिसाल, लेकिन बेटे पर लगे आरोप

मोरारजी देसाई को ईमानदारी और सादगी का प्रतीक माना जाता था। वह महंगे खाने-पीने से बचते थे और बेहद अनुशासित जीवन जीते थे। हालांकि, उनके बेटे कांति देसाई पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा।
भारत रत्न और पाकिस्तान का सर्वोच्च सम्मान
मोरारजी देसाई एकमात्र भारतीय प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें भारत सरकार की ओर से ‘भारत रत्न’ और पाकिस्तान की ओर से ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ (तहरीक-ए-पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान) मिला। यह उनके अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक कौशल को दर्शाता है।
मौत से पहले 100 साल जीने की थी ख्वाहिश

मोरारजी देसाई का सपना था कि वह 100 साल की उम्र तक जिएं, लेकिन 10 अप्रैल 1995 को 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। वह रात में किसी भी कीमत पर नींद खराब करना पसंद नहीं करते थे और प्रधानमंत्री रहते हुए भी यही नियम बनाए रखा।
मोरारजी देसाई भारतीय राजनीति के सबसे दिलचस्प और अनूठे नेताओं में से एक थे। उनकी अनुशासनप्रियता, ईमानदारी और अडिग स्वभाव के कारण उन्हें कभी-कभी सख्त समझा गया, लेकिन उन्होंने भारतीय लोकतंत्र में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। चाहे स्वमूत्रपान की वकालत हो, इंदिरा गांधी से टकराव हो या फिर 100 साल जीने की ख्वाहिश, मोरारजी देसाई का जीवन हमेशा चर्चा का विषय बना रहेगा।
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