रांची: आज झारखंड की राजनीति में अगर किसी दल का नाम सबसे पहले लिया जाता है, तो वो है झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM)। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने की जो कहानी है, वो सिर्फ चुनावी जीत की नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना, आंदोलन और बलिदानों की भी कहानी है। 1972 में जब शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी, तो यह महज एक राजनीतिक दल नहीं था, बल्कि यह झारखंड आंदोलन की अगली कड़ी था।
जयपाल सिंह से शुरू हुई चेतना, जेएमएम ने दिया राजनीतिक स्वरूप
1949 में जयपाल सिंह मुंडा द्वारा झारखंड पार्टी की स्थापना ने अलग राज्य की मांग को वैचारिक आधार दिया। 1952, 1957 और 1962 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन 1962 में कांग्रेस से गठबंधन के बाद उसका जनाधार कमजोर पड़ता चला गया। उसी खालीपन को 1972 में जेएमएम ने भरा। बिरसा मुंडा की जयंती पर शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और एके राय ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की।
पहला स्थापना दिवस और आंदोलन की नींव
4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ मैदान में जेएमएम ने अपना पहला स्थापना दिवस मनाया। उस दिन निकाली गई रैली और सभा से यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई क्षणिक उत्साह नहीं, बल्कि दीर्घकालिक संघर्ष की शुरुआत है। स्थापना दिवस को हर साल उसी स्थान पर मनाया जाना, संगठन की प्रतिबद्धता और निरंतरता का प्रतीक बन गया।
संगठन विस्तार और आदिवासी चेतना
शिबू सोरेन और विनोद बिहारी महतो ने आदिवासी, कुरमी, मुस्लिम, दलित और अन्य पिछड़े वर्गों में संगठन की पैठ बनाई। ‘हर घर से एक मुट्ठी चावल’ का नारा आंदोलन को जन-जन से जोड़ने का जरिया बना। चवन्नी-अठन्नी से चंदा इकट्ठा कर पार्टी ने आर्थिक स्वावलंबन का उदाहरण पेश किया।
अध्यक्षीय दौर और संगठन की मज़बूती
1984 तक विनोद बिहारी महतो पार्टी अध्यक्ष रहे। उनके बाद निर्मल महतो और फिर 1987 से शिबू सोरेन ने पार्टी की कमान संभाली और लगभग चार दशकों तक संगठन को मज़बूती दी। इस दौरान पार्टी ने कई उतार-चढ़ाव देखे लेकिन आंदोलन की दिशा कभी नहीं बदली।
निर्वाचन आयोग की मान्यता और चुनावी प्रदर्शन
1980 में जेएमएम को निर्वाचन आयोग से मान्यता मिली और शिबू सोरेन दुमका से सांसद चुने गए। उसी साल पार्टी को 11 विधानसभा सीटें मिलीं। 1990 में 19 सीटें जीत कर पार्टी ने बिहार सरकार गठन में अहम भूमिका निभाई। हालांकि 1995 में जेएमएम को झटका लगा और केवल 10 सीटें मिल सकीं।
2000 में जब झारखंड राज्य बना, तब जेएमएम के 12 विधायक थे। राज्य गठन के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 17 सीटें जीतीं और झारखंड की सत्ता के समीकरणों में निर्णायक भूमिका निभाई।
सत्ता की ओर बढ़ते कदम
2009 में पार्टी को 18 सीटें मिलीं, लेकिन 2014 में सहयोगी दलों के खराब प्रदर्शन की वजह से जेएमएम सत्ता से दूर रही। 2019 में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पार्टी ने 30 सीटें जीत कर कांग्रेस-राजद के साथ सरकार बनाई।
2024 और 2025: जेएमएम का सुनहरा दौर
2024 में जेएमएम का प्रदर्शन पहले से भी बेहतर रहा। 34 सीटें जीतकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनी। 2025 में पार्टी ने संगठनात्मक रूप से खुद को और भी अधिक मज़बूत किया है, और यह स्पष्ट संकेत दे रही है कि आने वाले वर्षों में झारखंड की राजनीति में उसका वर्चस्व और गहराएगा।
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