ओटावा, कनाडा: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सत्ताधारी लिबरल पार्टी के नेता और देश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की है। हालांकि, पार्टी के नए नेता चुने जाने तक वे प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहेंगे।
जस्टिन ट्रूडो, जो 2015 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, ने अपने इस्तीफे के दौरान कहा, “यह एक कठिन निर्णय था, लेकिन देश और पार्टी के भविष्य के लिए यह आवश्यक है। मेरे लिए यह सम्मान की बात रही कि मैं कनाडा की सेवा कर सका।”

जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक जीवन और चुनौतियां
जस्टिन ट्रूडो, कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के पुत्र, ने अपने नेतृत्व में लिबरल पार्टी को तीन बार चुनावी जीत दिलाई। वे देश में जलवायु परिवर्तन, लैंगिक समानता और समावेशिता जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान कुछ विवादों और आर्थिक चुनौतियों ने उनकी सरकार की लोकप्रियता को प्रभावित किया।
पिछले कुछ वर्षों में, विपक्षी दलों और कुछ लिबरल पार्टी के भीतर से भी उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे थे। यह इस्तीफा ऐसे समय में आया है, जब कनाडा में आगामी चुनावों और देश की अर्थव्यवस्था को लेकर गहन चर्चा हो रही है।

आने वाले दिनों में लिबरल पार्टी के सामने नई चुनौतियां
लिबरल पार्टी अब अपने नए नेता की तलाश में जुट गई है। संभावित उम्मीदवारों में उपप्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड और वित्त मंत्री कई मुख्य नामों में शामिल हैं। पार्टी के नेताओं ने ट्रूडो के योगदान को सराहा और कहा कि उनका नेतृत्व पार्टी और देश के लिए प्रेरणादायक रहा है।
कनाडा के राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव का संकेत
जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा कनाडा के राजनीतिक परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव लाएगा। विपक्षी दल, खासकर कंज़र्वेटिव पार्टी, अब इस मौके को भुनाने की कोशिश करेंगे।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रूडो के इस्तीफे के बाद कनाडा की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं।आने वाले महीनों में लिबरल पार्टी की नई दिशा और नेतृत्व की क्षमता देश के भविष्य की राजनीति को तय करेगी। ट्रूडो ने अपने भाषण में कनाडा के लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मैं कनाडा और उसके लोगों से हमेशा जुड़े रहूंगा। देश के प्रति मेरा प्यार और सेवा का भाव कभी नहीं बदलेगा।”
अब सभी की निगाहें लिबरल पार्टी की आगामी नेतृत्व प्रक्रिया और कनाडा की राजनीतिक स्थिति पर टिकी हैं।
खालिस्तानी मुद्दे पर नरमी जैसे नीतियों को लेकर जस्टिन ट्रूडो पर भारत जता चुका है असंतोष
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नीतियों को लेकर भारत और कनाडा के संबंधों में हाल के वर्षों में तनाव देखने को मिला है। भारत सरकार ने सार्वजनिक रूप से कनाडा की कुछ नीतियों और निर्णयों पर असहमति जताई है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक और राजनयिक संबंध प्रभावित हुए हैं।

भारत- कनाडा वैचारिक मतभेद का मुख्य मुद्दें:
1. खालिस्तान समर्थक गतिविधियों का समर्थन-
भारत का कहना है कि कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, और ट्रूडो सरकार इसे रोकने में असफल रही है। भारत ने इस पर कई बार विरोध दर्ज कराया है। कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा के समर्थन में रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन भारतीय अधिकारियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
2. कृषि आंदोलन पर बयानबाजी-
जस्टिन ट्रूडो ने 2020-21 में भारत के किसान आंदोलन पर बयान दिया था, जिसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया। भारत ने इसे अपने आंतरिक मामलों में दखल माना और इसे अनुचित करार दिया।
3. व्यापारिक समझौतों में ठहराव-
भारत और कनाडा के बीच संभावित व्यापार समझौते की वार्ताओं में भी प्रगति धीमी है। भारत का मानना है कि कनाडा की नीतियां कभी-कभी द्विपक्षीय व्यापार के अनुकूल नहीं होतीं।
4. भारत- कनाडा के बीच राजनयिक तनाव-
हाल ही में दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर मतभेद बढ़े हैं। भारत ने कनाडा में बढ़ते भारतीय दूतावास और कांसुलर स्टाफ पर खतरों को लेकर चिंता जताई है।
https://indiafirst.news/justin-trudeaus-shocking-decision
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