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“डिजिटल युग में अकेलापन: युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर संकट”


आजकल की युवा पीढ़ी विश्वभर में भारी दबाव में है। अपेक्षाएँ आसमान छू रही हैं, लेकिन समर्थन अक्सर न्यूनतम होता है। जब विश्व तेजी से बदल रही है, तो लगता है कि युवा पीढ़ी अपने रास्ते पर चलने के लिए संघर्ष कर रही है। डिजिटल नशा, मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं, सामाजिक अपेक्षाएं और कोरोना वायरस महामारी के परिणाम, इन सबने मिलकर युवाओं के लिए एक कठिन वातावरण पैदा किया है। लेकिन इन चुनौतियों के अलावा, एक और बड़ी संकट है जो युवाओं के भविष्य को खतरे में डाल रहा है: प्रदूषण, जनसंख्या,राजनीति में बढ़ता हुआ विश्वासघात और विश्व के नेताओं के प्रति बढ़ता अविश्वास।

डिजिटल पीढ़ी का जाल

प्रौद्योगिकी आजकल विश्वभर में युवाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गई है। सोशल मीडिया, गेम्स और हमेशा ऑनलाइन रहना, अब विकल्प नहीं, बल्कि वास्तविकता बन चुका है। प्रायः हम इसे दोषी न ठहराते हों — शायद लोग इससे जुड़ा रहने, नए दोस्त बनाने, या बस समय बिताने का एक मात्र साधन भर मानता हो। लेकिन इस डिजिटल दुनिया में प्रवेश करना और लत लगना वास्तव में बहुत चिंताजनक है। जिससे की अधिकतर युवा ग्रसित हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में 10 से 24 वर्ष के अधिकतर युवाओं अपना समय डिजिटल स्क्रीन पर व्यतीत करते है, जिसमें सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा समय व्यतीत करना पसंद है। अब यह साबित हो चुका है कि लगातार डिजिटल में ध्यान केन्द्ररित करने से मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गंभीर प्रभाव डालता है।

शोध झूठ नहीं बोलतीं:  विश्वभर में 1 में से 7 युवा उदासी या चिंता विकार से जूझ रहे हैं, और यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। अध्ययन बताते हैं कि सोशल मीडिया का युवाओं के आत्म-सम्मान पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जो प्रतिदिन अवास्तविक सौंदर्य आदर्शों, तुलना और हमेशा ‘परिष्कृत या सिद्ध’ होने के दबाव का सामना करते हैं। यह शरीर और लोकप्रियता पर ध्यान केंद्रित करने से अवास्तविक अपेक्षाएँ पैदा होती हैं, जो युवाओं पर दबाव बढ़ाती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ रिकॉर्ड स्तर पर

आजकल का मानसिक स्वास्थ्य युवाओं के लिए सबसे बड़ी चिंता बन चुका है। एक समाज में जो लगातार प्रदर्शन पर जोर देता है, वहाँ सफलता की मांग ने दुनिया भर में युवा पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरे निशान छोड़े हैं। यह कोरोना वायरस महामारी के दौरान और अधिक स्पष्ट हुआ, जिसने युवाओं के जीवन को पूरी तरह से बदल करके रख दिया।

संयुक्त राष्ट्र (UN) के एक अध्ययन के अनुसार, 15 से 24 वर्ष के युवाओं में उदासी और चिंता के मामलों में 50% की वृद्धि हुई है। महामारी की पाबंदियों ने युवाओं को अलग-थलग कर दिया और मानसिक स्वास्थ्य को और भी खराब किया। स्कूलों की लंबी बंदी, सामाजिक संपर्क का अभाव, और भविष्य के प्रति अनिश्चितता वे कारक हैं जिन्होंने युवाओं की भलाई को नुकसान पहुँचाया। यह सिर्फ सामाजिक संपर्क का अभाव तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भविष्य के बारे में असमंजस, स्कूल में खुद को बनाए रखने का डर और एक ऐसी समाज की अपेक्षाएँ, जो निरंतर बदल रही है।

माता-पिता: सहायक भूमिका या स्वयं संकट में?

माता-पिता, जिन्हें पारंपरिक रूप से बच्चों के लिए सहारा बनना चाहिए, अब स्वयं भी दबाव में हैं। आर्थिक असुरक्षा, लंबी कार्य समय सीमा, कार्य और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने की निरंतर कोशिशों ने, दुनियाभर में माता-पिता और अभिभावकों के लिए यह मुश्किल बना दिया है कि वे अपने बच्चों की मानसिक और भावनात्मक जरूरतों पर ध्यान दें या फिर घर की जरूरतों पर। अगर ध्यान इस ओर नहीं दिया तो युवाओं का भविष्य अन्धकार में जा सकता है, इससे युवाओं को अकेला और अनसुना महसूस हो सकता है। इसलिए अभिभावकों को अपने बच्चों और निजी जीवन के बीच समन्वय स्थापित कर, उनकी चिंताओं को समझना और खुलकर बात करना आवश्यक हो गया है।

कई देशों में वयस्कों में बेरोजगारी दर में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है, जिससे अधिक वित्तीय तनाव उत्पन्न हुआ है। यह स्थिति सीधे तौर पर युवाओं की परवरिश को प्रभावित करती है, क्योंकि माता-पिता भोजन और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की चिंता करते हैं, न कि बच्चों की भलाई पर। इससे युवाओं पर और अधिक दबाव बढ़ता है, जो खुद को एक ऐसी दुनिया में बिना किसी वास्तविक समर्थन के छोड़ देते हैं।

स्चूलों में प्रदर्शन का दबाव

शिक्षा, जो कभी सीखने, पढने और बढ़ने की जगह हुआ करती, अब दुनियाभर में कई युवाओं के लिए निरंतर तनाव का एक स्रोत बन चुकी है। प्रदर्शन का दबाव, माता-पिता और शिक्षकों की अपेक्षाएँ, और मानकों पर खरा न उतरने का डर मानसिक बोझ का कारण बनते हैं।

कई देशों में, युवा पीढ़ी को बचपन से ही अकादमिक प्रदर्शन पर उच्च प्राथमिकता दी जाती हैं। UNICEF के अनुसार, दुनिया भर में 25 प्रतिशत युवाओं को स्कूल की प्रदर्शन संबंधी चिंताओं से भारी तनाव होता है। अब हर किसी की नजर सिर्फ अंकों, डिग्रियों और सफलता पर है, जबकि युवाओं के व्यक्तिगत विकास और अनिश्चित भविष्य के लिए जरूरी कौशलों को विकसित करने पर बहुत कम ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है।

युवाओं को अपनी रुचियों को निभाने और अपने कौशलों को खोजने के बजाय, उन्हें उत्पादक मशीनों के रूप में देखा जाता है, जिन्हें एक ऐसे श्रम बाजार के लिए तैयार होना है, जो निरंतर बदलता जा रहा है और जिसे पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। इससे युवाओं में असमंजस और यहां तक कि डर पैदा हो जाता है, क्योंकि वे नहीं जानते कि उन्हें किस दिशा में जाना चाहिए। इसलिए युवाओं के कौशल को निखारना और सही मार्गदर्शन करना अतिआवश्यक है।

प्रदूषण: एक अदृश्य खतरा

विश्वभर में युवाओं के लिए उनका वातावरण सिर्फ प्रौद्योगिकी से प्रभावित नहीं है, बल्कि प्रदूषण के विनाशकारी प्रभावों से भी प्रभावित है। जिस हवा को हम सांस में लेते हैं, जिस पानी को हम पीते हैं और जिस खाद्य श्रृंखला को हम पालन करते हैं, वे सभी प्रदूषण के गंभीर परिणामों से प्रभावित हैं। आज की युवा पीढ़ी उस पर्यावरणीय क्षति के परिणामों का सामना कर रही है, जो दशकों से हो रही है, लेकिन सबसे बड़ा असर अभी देखना बाकी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, विश्वभर में 90 प्रतिशत से अधिक युवा हवा के प्रदूषण के संपर्क में आते हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बड़े शहरों में, वायु प्रदूषण युवाओं के स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह केवल श्वसन समस्याएँ पैदा नहीं करता, बल्कि मस्तिष्क के विकास को भी प्रभावित कर सकता है और पुरानी बीमारियों के विकास को न्योता दे सकता है।

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के परिणाम, जैसे मौसम से सम्बंधित घटनाएं, समुद्र स्तर में वृद्धि और प्राकृतिक आपदाएँ, युवाओं के लिए चिंता और अनिश्चितता का स्रोत हो सकती हैं। विश्वभर में 45 प्रतिशत युवा यह मानते हैं कि वे अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं, जो मानसिक कल्याण को और कमजोर करता है।

अधिक जनसंख्या: एक संकटग्रस्त दुनिया

प्रदूषण के साथ-साथ, अधिक जनसंख्या एक और प्रमुख चुनौती है, जिसका सामना दुनिया भर के युवाओं को करना पड़ रहा है। दुनिया की जनसंख्या अब तक की सबसे तेज़ी से बढ़ रही है, जिससे संसाधनों जैसे भोजन, पानी और ऊर्जा की मांग बढ़ रही है। इस वृद्धि का पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन सामाजिक संरचनाओं पर भी इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 तक विश्व की जनसंख्या अनुमानित रूप से 9.7 अरब हो जाएगी, जो बुनियादी ढांचे, संसाधनों और पर्यावरण पर भारी दबाव डालेगा। बहुत से विकासशील देशों में, जहां पर जनसंख्या वृद्धि सबसे तेज़ है, वहां की युवा पीढ़ी बढती जनसंख्या का सामना सीधे तौर पर कर रही है। ओवरक्राउडेड शहर, स्वच्छ पीने के पानी तक सीमित पहुंच, खराब स्वच्छता और अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, ये सब करोड़ों युवाओं के लिए रोजमर्रा की वास्तविकता हैं।

राजनीति में विश्वास: युवाओं का निराशा

जैसा कि युवा विश्वभर में जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं, उनके सामने अक्सर वे राजनीतिक नेताओं से मदद की उम्मीद रखते हैं, जो उनके भविष्य की रक्षा करने का दावा करते हैं। लेकिन यह विश्वास लगातार कम हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार, विश्वभर में केवल 25 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि उनके देश के राजनीतिक नेता, उनके हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह बढ़ता हुआ अविश्वास भ्रष्टाचार, वादों के पूरे न होने और सरकारों के प्रतीत होने वाले असंवेदनशीलता के कारण बढ़ता जा रहा है।

भविष्य: एक असमंजस में युवा पीढ़ी

विश्वभर में युवा पीढ़ी का भविष्य असमंजस और अनिश्चितता से भरा हुआ लगता है। प्रौद्योगिकी में प्रगति और वैश्वीकरण ने नई संभावनाएँ दी हैं, लेकिन समाजिक संरचनाएं जो कभी स्थिरता की प्रतीक रही, अब ढह रही हैं। जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक असुरक्षा — ये सभी ऐसे कारक हैं जिनके कारण युवाओं को अपने भविष्य को लेकर डर है।

अब सवाल यह उठता है की हम आज के युवाओं को संकट से उबारने के लिए क्या कर सकते हैं?

जवाब सरल नहीं है। यह स्पष्ट है कि युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक संपर्क के क्षेत्रों में अधिक समर्थन की आवश्यकता है। यह जरूरी है कि उनके पास मजबूती से खड़ा होने के लिए कौशल और उपकरण या साधन हों, और एक ऐसी दुनिया हो जिसमें वे महसूस करें कि उनकी आवाज सुनी जाती है।

समाज को यह समझने की जरूरत है कि आज का युवा कल का भविष्य है। यह पर्याप्त नहीं है कि हम उनसे यह उम्मीद करें कि वे बदलती दुनिया में खुद को ढाल लें, बिना समर्थन और उपकरण दिए। हमें युवाओं की समस्याओं को गंभीरता से सुनने और उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के समर्थन में काम करने के लिए तैयार रहना होगा। अगर हम इस पीढ़ी के संघर्षों की अनदेखी करते रहे, तो हम सिर्फ युवाओं को नहीं खोएंगे, बल्कि हमारे समाज का भविष्य भी खो देंगे।

https://indiafirst.news/loneliness-in-the-digital-age-a-crisis-on-youth-mental-health

https://www.un.org/en

https://www.who.int

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