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डिजिटल पढ़ाई पर रोक ! स्वीडिश सरकार ने 15 साल से छोटे बच्चों के लिए बदली शिक्षा-नीति


हाल ही में स्वीडिश सरकार द्वारा लाया गया नया शिक्षा प्रणाली ने एक बार फिर से पारम्परिक शिक्षा की ओर मुड़ने को विवश कर दिया। स्वीडिश सरकार द्वारा कराया गया सर्वे ने तकनीकी शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न सा खड़ा कर दिया है। बच्चों से सम्बन्धित कई ऐसी जानकारियां सामने आने के बाद। विश्वभर में हड़कंप मच गया है। हर तरफ इसकी चर्चा और इस पर बातचीत किया जा रहा है। तकनीकी शिक्षा ने पारम्परिक शिक्षा प्रणाली को बदल करके रख दिया है। दुनियाभर की शिक्षा व्यवस्था आजकल पूरी तरह से डिजिटल की ओर अग्रसर हो गया है। शायद ही ऐसा कोई देश डिजिटल शिक्षा व्यवस्था से अनभिज्ञ या अक्षुण्ण हो। बदलते परिदृश्य के साथ लोगों के सोच में, बदलाव देखने को मिलना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसे अपनाना किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए। तकनीकी शिक्षा व्यवस्था ने लोगों के जीवन में, खासकरके दूरदराज में रहने वाले, जिसके पास समय की कमी हो, कक्षा के लिए समय न हो या फिर काम की वजह से आगे की पढ़ाई करने में दिक्कतों का सामना करना पड़े। इन सभी के लिए डिजिटल शिक्षा प्रणाली किसी वरदान से कम नहीं है।

रिपोर्ट में ऐसा क्या है जो चिंता का विषय –

स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े संस्थाओं ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपा उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिक्षा के डिजिटलाइजेशन होने से बच्चों के शारीरिक, मानसिक और मस्तिष्क पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। शिक्षा के डिजिटलीकरण के कारण बच्चों के बौद्धिक विकास में अमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिला। इसके कई कारण गिनाया गया जैसे देर से सोना जिसके वजह से बच्चे कक्षा में ही सो जाते हैं। कक्षा में ध्यान न देना, थकान महसूस होना। इसके साथ ही शारीरिक फुर्ती में कमी देखने को मिला। खेलों में ज्यादा रुचि न होना और न ही भाग लेने में दिलचस्पी लेना। लिखने और पढ़ने में समस्या, खासकरके लिखने में गलतियां करना। शारीरिक, मानसिक और मस्तिष्क में से किसी में भी सही तरीके से संतुलन बनाए न रख पाना। रचनात्मक कार्यों में कमी देखने को मिलना। इसके साथ ही मस्तिष्क का स्तर में कमी दिखाई देना शामिल रहा। स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याएं उत्पन्न होना -बच्चों के स्वास्थ्य सम्बन्धित बीमारियां जैसे चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, अवसादग्रस्त, आंखों की समस्या, कम आयु में ही कमजोरीपन होना, कम सोना और बच्चों का नींद न लग पाना जैसे लक्षणों के संकेत देखने को मिला दुनियाभर में भी ऐसे कई शोध में इसका उल्लेख किया गया है।

स्वीडिश सरकार द्वारा किया गया अनुशंसा –

सरकार का मानना है कि डिजीटल या स्क्रीन छोड़, किताब कि ओर जाने से बच्चों को लाभ होगा। विश्वभर में हुए शोध के अनुसार डिजिटलीकरण के कारण बच्चों की लिखने,पढ़ने और बुनियादी अंकगणित की समझ में बहुत अंतर देखने को मिला। विशेषज्ञों ने स्वीडन सरकार को रिपोर्ट सौंपा और अपना सुझाव सरकार के समक्ष रखा। रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझावों को अपनाने को कहा है जिनमें से पुस्तकों को फिर से लागू करना शामिल है। पुस्तकालय में फिर से ध्यान देना, इसके प्रति बच्चों में रुचि जगाना ताकि बच्चें डिजिटल की जगह पुस्तक से पुस्तकालय की ओर रुख कर सके । बच्चों को डिजिटल के सम्पर्क में तब तक नहीं आने दिया जाना चाहिए जब तक कि बच्चों के मन-मस्तिष्क में बुनियादी समझ स्थापित न हो जाए। इसलिए बच्चों में डिजिटलीकरण की बढ़ती लोकप्रियता को नियंत्रित करने की सलाह दिया गया है।

शोध में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आया –

30 प्रतिशत से भी ज्यादा विद्यार्थी कक्षा में पढ़ाई के दौरान मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। अश्लील सामाग्री को देखने का आशय इंटरनेट पर सर्च करना, सोशल मीडिया पर वीडियो – फोटो और कमेंट – मैसेजेस को पढ़ना शामिल किया गया है। वहीं स्वास्थ्य विभाग की ओर से की गई शोध से पता चला कि, बच्चे देर रात तक जगे रहना स्वास्थ्य सम्बन्धित बीमारियों बुलावा दे रहे हैं। इसके कारण पढ़ने की क्षमता में जबर्दस्त कमी देखने को मिला। इसके अलावा बच्चों में मानसिक थकान का होना, शारीरिक गतिविधियों में शामिल न होना, परिवार के बीच होने के बावजूद आपसी बातचीत का न होना अर्थात डिजिटली दुनियां में खो सा जाना शामिल है। इससे बच्चे अवसादग्रस्त होते जा रहे हैं। यहां तक कि अध्ययन में चिड़चिड़ापन और व्यवहार में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिला।

स्क्रीन पर प्रतिबन्ध को लेकर कुछ नियम तय किया गया –

स्वीडिश सरकार ने कहा कि स्क्रीन पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार किया जा रहा है। इसे 2025 में कड़ाई से लागू किया जा सकता है। वहीं २०२८ के शिक्षा-नीति में पुरानी बेसिक स्तर के शिक्षा प्रणाली को दोबारा शामिल किया जाएगा। विशेषज्ञों द्वारा कुछ सुझाव दिया गया है जैसे कि 0 से 2 वर्ष के बीच वाले बच्चों को किसी भी तरह के स्क्रीन के सम्पर्क ना आने की सलाह दिया गया। वहीं 2 से 5 वर्ष के बीच बच्चों को सिर्फ 1 घंटे, 6 से 12 वर्ष के बीच 2 घंटे और 12 से 15 वर्ष के बीच बच्चों को मात्र 3 घंटे तक प्रतिदिन स्क्रीन पर समय बिता सकते हैं। जब स्टूडेंट्स मैच्योर हो जाएंगे तब यह समय सीमा की बाधा उन पर लागू नहीं होगा। इसका सही से पालन हो रहा है कि नहीं इस नजर रखा जाएगा। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, कि जरूरत पड़ने पर इन्वेस्टिगेशन भी किया जा सकता है। स्क्रीन कहने का तात्पर्य डिजिटल शिक्षा, मोबाइल, टेलीविजन, वीडियो गेम्स जैसी चीजों से सम्बन्धित है।

अश्लील सामाग्री देखने के मामलों में बच्चों की स्थिति –

स्टेटिस्टा रिसर्च विभाग के अनुसार स्वीडन में 38 प्रतिशत टीनएजर्स के पेरेंट्स का मानना है की 13 से 15 वर्ष के आयु में ही बच्चें अश्लील सामाग्री के संपर्क में आ जाते हैं। वहीं 28 प्रतिशत बच्चें १० से १२ वर्ष के बीच में, जबकि १ प्रतिशत पेरेंट्स के विचार से 3 साल के नीचे की उम्र वाले भी इसके चपेट में आ जाते हैं। हालांकि यह सर्वे २०१९ में ऑनलाइन प्लेटफार्म पर किया गया इसमे कुल १,०७९ अभिभावकों ने हिस्सा लिया और इस विषय पर अपने बच्चों का अनुभव को शेयर किया। इससे साफ पता चलता है की यह आंकड़ा अनुमानित से ज्यादा हो सकता है। पेरेंट्स को अपने बच्चे को लेकरके सतर्क रहना, खुल करके बातचीत करना, हर विषय पर बात करना और अच्छे से मार्गदर्शन करना चाहिए। वरना बच्चों का भविष्य अन्धकार में जा सकता है। डिजिटल होती दुनिया और इसके चका-चोंध में कहीं बच्चें भटक न जाए इसलिए इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। ताकि समय रहते बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोका जा सकता है। स्टेटिस्टा रिसर्च विभाग के अनुसार स्वीडन में 38 प्रतिशत टीनएजर्स के पेरेंट्स का मानना है की 13 से 15 वर्ष के आयु में ही बच्चें अश्लील सामाग्री के संपर्क में आ जाते हैं। वहीं 28 प्रतिशत बच्चें १० से १२ वर्ष के बीच में, जबकि १ प्रतिशत पेरेंट्स के विचार से 3 साल के नीचे की उम्र वाले भी इसके चपेट में आ जाते हैं। हालांकि यह सर्वे २०१९ में ऑनलाइन प्लेटफार्म पर किया गया इसमे कुल १,०७९ अभिभावकों ने हिस्सा लिया और इस विषय पर अपने बच्चों का अनुभव को शेयर किया। इससे साफ पता चलता है की यह आंकड़ा अनुमानित से ज्यादा हो सकता है। पेरेंट्स को अपने बच्चे को लेकरके सतर्क रहना, खुल करके बातचीत करना, हर विषय पर बात करना और अच्छे से मार्गदर्शन करना चाहिए। वरना बच्चों का भविष्य अन्धकार में जा सकता है। डिजिटल के चका-चोंध में कहीं बच्चें भटक न जाए एस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है।

Source: Statista 2025

प्रस्ताव को विशेषज्ञों द्वारा निंदा की गई –

विशेषज्ञों ने सरकार को आगाह भी किया कि इससे कामकाजी अभिभावकों पर इसका मानसिक असर भी पड़ सकता है। क्योंकि आज के समय में ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को डे-केयर में छोड़ करके, काम करने के लिए चले जाते हैं। कार्य के बीच में ही कभी-कभी अपने बच्चों से बातचीत और वीडियो कैमरा के माध्यम से बच्चों को देखना और हालचाल पूछना पसंद करते हैं। खास करके बच्चों के मां पर इसका मानसिक असर पड़ सकता है। इसलिए जरूरत है इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखने की। अगर कोई माता-पिता 8 घंटे तक सिर्फ ड्यूटी करे इसके साथ ही आने जाने में 1-2 घंटा को भी जोड़ दिया जाए तो 10 घंटे तक अपने बच्चों को ना देख पाना चिंता का विषय उत्पन्न होना स्वाभाविक है। पार्ट-टाइम के तौर पर काम कर रही महिलाओं को भी इससे जूझना पड़ेगा। एक्सपर्ट मानते हैं कि स्वीडिश सरकार द्वारा लाया जा रहा नया शिक्षा-नीति लागू करना सराहनीय कदम है लेकिन इसके साथ ही अभिभावकों पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। वरना इससे कई चीजें आउट ऑफ कंट्रोल हो सकती है जैसे कि बच्चों की जन्म दर में गिरावट, बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी कम हो जाना शामिल है इसके साथ ही इस विधेयक को विरोध का सामना करना भी पड़ सकता है। हालांकि कई माता-पिता इसे समर्थन भी करते हैं, पेरेंट्स को बच्चों के प्रति जागरूक किया जा सकता है।

डिजिटली व्यवस्था को बंद होने से, कई देशों में सकारात्मक परिणाम देखा गया –

ऐसे कई देश हैं जहां पर डिजिटल शिक्षा प्रणाली को कम करके। कुछ ही सालों में, अच्छे परिणाम देखने को मिला। चीन सरकार का मानना है कि बच्चों को डिजिटल से दूर रखने से हमें सकारात्मक परिणाम देखने को मिला। स्टूडेंट्स के प्रोडक्टिविटी में जोरदार उछाल देखने के साथ ही शारीरिक गतिविधियों में शामिल होना शुरू कर दिया। पहले की तुलना में बहुत सुधार देखने को मिला। स्पेन सरकार का मानना है कि पेरेंट्स द्वारा सोशल मीडिया में एक्टिव बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने से काफी फर्क देखने को मिला है। यहां तक की पेरेंट्स ने पिछले वर्ष सरकार से मांग किया कि 16 वर्ष तक के बच्चों को फोन रखने पर पाबंदी लगा देना चाहिए। स्पेन में बहुत सारे बच्चों पर पुलिस द्वारा केस दर्ज किया गया है कारण अश्लील सामाग्री को फैलाना, बदनाम करना, इसके लिए AI का इस्तेमाल किया तथा अन्य टूल्स का सहारा लेकरके वायरल करना शामिल है। नीदरलैंड की सरकार भी इस ओर सोचना शुरू कर दिया है। स्कूल्स में फोन लेकरके जाने पर प्रतिबंध लगा सकता है। इस पर अभी काफी डिबेट हो रही है। इसके अलावा फ्रेंच प्रेसिडेंट का भी मानना है कि 3 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों को स्क्रीन देखने पर रोक लगना चाहिए। अमेरिका-कनाडा और यूरोप जैसे अन्य देशों के स्कूलों में फोन का उपयोग करना प्रतिबन्ध है।

स्वीडिश सरकार ने शिक्षा और पुस्तकालयों पर मिलियंस SEK का निवेश –

स्वीडिश सरकार ने शिक्षा और पुस्तकालयों पर होने वाली बजट को बढ़ा दिया है इसके साथ ही सरकार ने कहा कि पुस्तकों पर खासा जोर दिया जाएगा। सिर्फ पुस्तकालयों पर वर्ष 2025 में SEK 216 मिलियन से ज्यादा करेगी। बाद में बढ़ा करके प्रति वर्ष SEK 433 मिलियन कर दिया जाएगा। वहीं पुस्तकों में इसके अतिरिक्त SEK 200 मिलियन से ज्यादा का निवेश करेगी इससे पुस्तकों में होने वाली कुल खर्च प्रति वर्ष SEK 755 मिलियन हो जाएगा। वर्ल्ड बैंक डाटा के अनुसार स्वीडिश सरकार जीडीपी का 7.5 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च किया। वहीं ओईसीडी के अनुसार प्राइमरी से तृतीय स्तर तक की शिक्षा में 17,107 डॉलर प्रति वर्ष स्टूडेंट पर खर्च करती है। वहीं 3.1 प्रतिशत सिर्फ शोध और नवोन्मेष पर खर्च करती है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार शिक्षा पर कितना संजीदा है।

Source: World Bank Data

https://indiafirst.news/major-changes-in-swedish-education-policy-digital-restrictions-on-15-year-old-children

Government investing in more reading time and less screen time – Government.se

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