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NIA जज को भेजा गया धमकी भरा पत्र, नक्सली नेताओं को छुड़ाने की साजिश उजागर

NIA Court Judge Threat Letter Jharkhand

रांची: झारखंड की राजधानी रांची में स्थित सिविल कोर्ट परिसर में उस वक्त हड़कंप मच गया, जब एनआईए कोर्ट के एक जज को जान से मारने की धमकी भरा पत्र मिला। इस पत्र में नक्सली नेताओं प्रशांत बोस और शीला मरांडी को जेल से छुड़ाने के लिए ‘जेल ब्रेक’ की योजना का भी खुलासा किया गया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए रांची पुलिस ने चार संदिग्धों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है और जांच शुरू कर दी गई है।

धमकी भरा यह पत्र कोर्ट परिसर में स्पीड पोस्ट के जरिए भेजा गया था। पुलिस सूत्रों के अनुसार, जज को दो लिफाफे प्राप्त हुए जिनमें अलग-अलग नामों से पत्र भेजे गए थे। दोनों पत्रों में साफ तौर पर लिखा गया था कि नक्सली नेताओं को छुड़ाने के लिए जेल पर हमला किया जाएगा और इसके लिए पहले ही शूटरों को पैसे दिए जा चुके हैं। पत्र में एक मोबाइल नंबर और संदिग्धों के नामों का भी उल्लेख किया गया है।

रांची कोतवाली थाना प्रभारी आदिकांत महतो ने बताया कि इस मामले में अरुण कुमार, अनामिका इंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड, साकेत तिर्की और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि धमकी भरे पत्र में जिन नामों का उल्लेख है, उनकी सत्यता और पृष्ठभूमि की जांच की जा रही है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन दो नक्सली नेताओं को छुड़ाने की बात कही गई है- प्रशांत बोस और शीला मरांडी- वे झारखंड पुलिस की हिरासत में हैं और उन पर कई संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। प्रशांत बोस को CPI (Maoist) का शीर्ष नेता माना जाता है और शीला मरांडी भी संगठन की केंद्रीय कमेटी की सदस्य रही हैं।

पुलिस ने इस धमकी को अत्यंत गंभीरता से लिया है और कोर्ट परिसर समेत अन्य संवेदनशील स्थानों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। साथ ही स्पीड पोस्ट से भेजे गए पत्रों की ट्रैकिंग कर यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि वे कहां से पोस्ट किए गए थे।

इस घटना से राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। यह मामला सिर्फ एक जज को धमकी देने का नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने जैसा है।

क्या कहती है विशेषज्ञ राय?

राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के जानकारों का मानना है कि यह धमकी महज डर फैलाने की कोशिश नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा हो सकती है। नक्सली संगठनों द्वारा पहले भी न्यायपालिका और पुलिस तंत्र को निशाना बनाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं।

राज्य पुलिस के साथ-साथ केंद्रीय एजेंसियों को भी इस मामले की जांच में शामिल किए जाने की संभावना है। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि जेल ब्रेक की कोशिश अगर सच होती है, तो यह झारखंड के लिए बेहद गंभीर खतरा साबित हो सकता है।

अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार और जांच एजेंसियां इस साजिश का पर्दाफाश करने में कितनी तेजी और सटीकता से काम करती हैं।

https://indiafirst.news/nia-judge-threat-letter-jharkhand-naxal-conspiracy

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