नई दिल्ली। प्रयागराज में बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए घरों पर चले बुलडोजर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्य सरकार को अब अपने खर्चे पर ध्वस्त किए गए घरों का पुनर्निर्माण करना होगा।
“अनुच्छेद 21 नाम की भी कोई चीज है!”
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस कार्रवाई को “चौंकाने वाला” और “गलत उदाहरण पेश करने वाला” बताया। न्यायमूर्ति ओका ने साफ शब्दों में कहा, “अब हम आदेश देंगे कि आप अपने खर्चे पर पुनर्निर्माण कीजिए, यही एकमात्र तरीका है।”
क्या है मामला?
याचिकाकर्ताओं में वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो विधवाएं और एक अन्य व्यक्ति शामिल हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि बिना कानूनी नोटिस का पालन किए उनके घर गिरा दिए गए। अधिकारियों ने शनिवार देर रात को नोटिस जारी किया और अगले ही दिन बुलडोजर चला दिया, जिससे उन्हें कोई कानूनी विकल्प तलाशने का मौका ही नहीं मिला।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि वे उस भूमि के वैध पट्टेदार थे और उन्होंने उसे फ्रीहोल्ड संपत्ति में बदलने के लिए आवेदन भी किया था। लेकिन अधिकारियों ने उनकी जमीन को गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद से जोड़ दिया, जिनकी 2023 में हत्या कर दी गई थी।
सरकार का बचाव, पर कोर्ट नहीं हुई संतुष्ट
राज्य सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने दावा किया कि याचिकाकर्ताओं को जवाब देने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था। लेकिन न्यायमूर्ति ओका ने नोटिस जारी करने के तरीके पर सवाल उठाए और राज्य के दावे में विसंगतियां पाईं।
अटॉर्नी जनरल ने यह भी दलील दी कि इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
अब क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद अब यूपी सरकार को इस मामले में जवाब देना आसान नहीं होगा। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि कानूनी प्रक्रिया को ताक पर रखकर लोगों के घर गिराना स्वीकार्य नहीं है और सरकार को अब अपने खर्चे पर दोबारा घर बनाने होंगे।
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