☀️
–°C
Fetching location…
🗓️ About Join Us Contact
☀️
–°C
Fetching location…

Updates

Categories

Join US

पत्नी से उधार लिया पैसा, गुंडों से कराई बूथ की रखवाली! नीतीश कुमार की 1985 की जीत की अनसुनी दास्तान

,

सुबहे सुर्ख़ियां:

  • आदर्शवाद नहीं, जमीनी हकीकत से लड़ी गई थी 1985 की लड़ाई
  • पत्नी मंजू से लिए 20 हजार, राजनीति छोड़ने का था वादा
  • देवीलाल से मिली जीप, गुंडों से कराई बूथ की निगरानी
  • 22 हजार वोटों से जीत कर रच दिया राजनीतिक भविष्य का नक्शा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट के बीच 1985 के चुनाव की एक अनसुनी लेकिन बेहद दिलचस्प दास्तान सामने आई है। ये कहानी है नीतीश कुमार की-आज के कद्दावर नेता, लेकिन उस वक्त एक संघर्षशील उम्मीदवार। उस चुनाव में उन्होंने जो रास्ता चुना, वो आदर्शवाद से इतर दंड-भेद, साम-दाम वाला था।

इस पूरे प्रसंग का ज़िक्र वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने अपनी चर्चित पुस्तक “Single Man: The Life & Times of Nitish Kumar of Bihar” में किया है।

जब नीतीश हार से टूटे, पत्नी से ली आर्थिक मदद

साल था 1985, और माहौल में अब भी इंदिरा गांधी की शहादत के बाद की सहानुभूति लहर थी। कांग्रेस का दबदबा बरकरार था। नीतीश कुमार पिछली हार से मानसिक रूप से टूटे हुए थे। उन्होंने अपनी पत्नी मंजू देवी से कहा कि यदि इस बार चुनाव हार गए, तो राजनीति को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे।

मंजू देवी ने अपनी बचत से 20 हजार रुपये उन्हें चुनाव प्रचार के लिए दे दिए- ये वही रकम थी, जो कभी दहेज के नाम पर विवाद का विषय बनी थी।

चुनाव में उतरी रणनीति: साम-दाम-दंड-भेद

1984 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने हिस्सा नहीं लिया था, क्योंकि उन्हें यकीन था कि कांग्रेस की सुनामी में कोई नहीं टिकेगा। मगर 1985 में सब कुछ दांव पर था। उनके पास इस बार राजनीतिक संरक्षण भी था-देवीलाल और चंद्रशेखर जैसे नेताओं ने आर्थिक मदद दी।

नीतीश के चुनाव प्रबंधक विजय कृष्ण ने पूरी रणनीति तैयार की। राजपूत समुदाय को साधा गया, झंडे-बैनर-पोस्टर और प्रचार में जमकर खर्च किया गया।

और यहां से विवादास्पद लेकिन प्रभावी निर्णय लिए जाने लगे। बूथ लूट रोकने के लिए गुंडों की टीम बनाई गई। संकर्षण ठाकुर लिखते हैं कि कुछ स्थानीय बदमाशों को जबरन पकड़कर उनके हाथ में बंदूक थमा दी गई- कहा गया, “अब बूथ की रखवाली तुम्हारा काम है।”

हरियाणा से आई देवीलाल की जीप

देवीलाल ने नीतीश को हरियाणा से एक विलिस जीप (CHQ-5802) भेजी, जिससे वह पूरे निर्वाचन क्षेत्र में आसानी से घूम सके।

मतदान के दिन, नीतीश की टीम पूरी तरह मोर्चे पर थी- बूथ कब्जा रोकना, नाराज़ गुटों को मनाना, और विरोधियों की रणनीति को मात देना ही उनका मिशन था।

नतीजा: 22 हजार वोटों से धमाकेदार जीत

इस बार नीतीश न केवल जीते, बल्कि 22 हजार से अधिक वोटों से विजयी हुए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। विधानसभा में उनकी वाकपटुता और विश्लेषणात्मक कौशल ने उन्हें तेजी से उभारा।

विकास, सामाजिक न्याय, आरक्षण जैसे मुद्दों पर वे कांग्रेस के सामने खड़े हो गए। जो कुर्मी समाज कभी उन्हें हराया करता था, वही अब उन्हें अपना नायक मानने लगा।

राजनीति में सबकुछ जायज?

1985 का यह चुनाव सिर्फ एक जीत की कहानी नहीं है, बल्कि एक नेता के व्यक्तिगत संघर्ष, नैतिक द्वंद्व और व्यावहारिक राजनीति का आईना भी है।

आज जब हम 2025 के चुनावी समर की ओर बढ़ रहे हैं, यह दास्तान याद दिलाती है कि राजनीति सिर्फ नारे और आदर्शों से नहीं, बल्कि जमीनी सच्चाई, समझौतों और कभी-कभी ‘गुंडों’ के सहारे भी चलती है।

https://indiafirst.news/single-man-the-life-times-of-nitish-kumar-of-bihar

स्रोत:

  • संकर्षण ठाकुर की पुस्तक “Single Man: The Life & Times of Nitish Kumar of Bihar”
पिछली खबर: ईरान-अमेरिका टकराव: परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद तेहरान का पहला बयान, बोले-‘हमारा न्यूक्लियर प्रोग्राम रुकेगा नहीं’

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ताज़ा समाचार

और पढ़ें

प्रमुख समाचार