नई दिल्ली। भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच शेयर बाजार में एक ऐसा बदलाव आया है जिसने निवेश के पूरे परिदृश्य को बदलकर रख दिया है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में लिस्टेड कंपनियों में घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) की हिस्सेदारी अब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) से ज्यादा हो गई है। यह स्थिति बीते 22 वर्षों में पहली बार सामने आई है।
घरेलू निवेशकों का बढ़ता भरोसा
मार्च 2025 तिमाही के आंकड़ों के अनुसार, DIIs की हिस्सेदारी बढ़कर 17.62% हो गई है जबकि FPIs की हिस्सेदारी घटकर 17.22% पर आ गई है। इसका सीधा संकेत है कि अब भारतीय निवेशक अपने देश की कंपनियों और अर्थव्यवस्था पर पहले से अधिक भरोसा कर रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में आम भारतीयों का रुझान पारंपरिक निवेश माध्यमों से हटकर शेयर बाजार की ओर हुआ है। म्यूचुअल फंड, बीमा योजनाएं, और पेंशन स्कीम जैसे साधनों में लगातार निवेश बढ़ा है।
सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) बना गेमचेंजर
प्राइम डेटाबेस के एमडी प्रणव हल्दिया के अनुसार, खुदरा निवेशकों से SIP के जरिए हो रहा नियमित निवेश म्यूचुअल फंडों को मजबूती दे रहा है। नतीजतन, घरेलू म्यूचुअल फंडों की हिस्सेदारी पहली बार दो अंकों तक पहुंची है। मार्च तिमाही में इन फंडों ने ₹1.16 लाख करोड़ का शुद्ध निवेश किया है।
निफ्टी में मामूली गिरावट, छोटे और मझोले शेयरों पर दबाव
जहां निफ्टी50 में इस तिमाही में केवल 0.5% की गिरावट देखने को मिली, वहीं निफ्टी मिडकैप 150 और स्मॉलकैप 250 इंडेक्स में क्रमशः 10% और 15% की गिरावट आई है। इस दौरान विदेशी निवेशकों ने ₹1.36 लाख करोड़ के शेयर बाजार से निकाले, लेकिन DIIs ने ₹1.9 लाख करोड़ का निवेश कर बाजार में संतुलन बनाए रखा।
बदलती निवेश मानसिकता
आदित्य बिड़ला सन लाइफ म्यूचुअल फंड के सीईओ ए. बालासुब्रमणियन के अनुसार, भारत में बचत की आदतें तेजी से बदल रही हैं। अब लोग फिक्स्ड डिपॉजिट और रियल एस्टेट जैसे पारंपरिक विकल्पों के बजाय इक्विटी बाजार की ओर झुकाव दिखा रहे हैं। बीमा कंपनियों, पेंशन फंडों और वैकल्पिक निवेश फंडों की सक्रियता ने भी DIIs की भागीदारी को नया बल दिया है।
बाजार में मजबूती के संकेत
जनवरी 2025 में जब FPIs ने एक ही महीने में ₹87,000 करोड़ के शेयर बेचे, तब भी निफ्टी में केवल 2-3% की गिरावट दर्ज हुई। इसकी तुलना में 2008 में ₹16,000 करोड़ के बिकवाली से बाजार 25% तक गिर गया था। यह दिखाता है कि घरेलू निवेशकों की मजबूत भागीदारी अब बाजार को स्थिरता प्रदान कर रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अमेरिका में सरकारी बॉन्ड की यील्ड 3.5% के स्तर तक नहीं गिरती, तब तक विदेशी निवेशकों की वापसी सीमित रहेगी। ऐसे में निकट भविष्य में घरेलू निवेशकों का दबदबा जारी रहने की संभावना है।
आर्थिक रूप से यह एक ऐतिहासिक बदलाव है, जो न केवल भारत की पूंजी बाजार में आत्मनिर्भरता को दर्शाता है, बल्कि आम निवेशकों की बढ़ती समझ और भागीदारी का भी प्रमाण है।
https://indiafirst.news/stock-market-shift-domestic-vs-foreign-investors
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