नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हिंसा और अराजकता के बीच राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि पहले ही हम पर कार्यपालिका के कामकाज में दखल देने के आरोप लग रहे हैं, और अब आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को आदेश जारी करें?
यह याचिका वकील विष्णु शंकर जैन द्वारा दाखिल की गई थी, जिसमें बंगाल में पैरामिलिट्री फोर्स की तत्काल तैनाती और राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की गई थी। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, “हम कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।” कोर्ट ने याचिका में एक अतिरिक्त आवेदन दाखिल करने की अनुमति दे दी है।
सुनवाई के दौरान वकील शशांक शेखर झा द्वारा दायर एक अन्य याचिका पर भी विचार हुआ, जिसमें मुर्शिदाबाद हिंसा की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) से कराने की मांग की गई है। कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखने का फैसला किया है।
गौरतलब है कि हाल ही में वक्फ एक्ट के विरोध में मुर्शिदाबाद में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे, जो बाद में हिंसा में बदल गए। इस दौरान तीन लोगों की जान चली गई और कई घरों को जला दिया गया। हिंसा के बाद हालात इतने खराब हो गए कि राज्यपाल खुद हालात का जायजा लेने पहुंचे। महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने भी घटनास्थल का दौरा कर पीड़ितों के दर्द को ‘शब्दों से परे’ बताया।
इस मामले में राजनीति भी गर्माई हुई है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने हाल ही में बयान दिया था कि देश में हो रहे गृहयुद्ध जैसे हालात के लिए सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार हैं। इस बयान पर विपक्ष ने बीजेपी को घेरा, जबकि पार्टी ने खुद को दुबे के बयान से अलग कर लिया। कोर्ट में भी इस बयान का जिक्र आया और न्यायालय ने साफ किया कि वह कार्यपालिका के काम में दखल देने की भूमिका में नहीं है।
फिलहाल, बंगाल हिंसा पर देशभर की नजर टिकी हुई है और सुप्रीम कोर्ट का अगला कदम क्या होगा, इस पर भी सबकी निगाहें लगी हुई हैं।
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