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अमेरिकी सेना से ट्रांसजेंडर्स सैनिकों को बाहर करने की प्रक्रिया तेज: ट्रंप सरकार का बड़ा फैसला

अमेरिकी सेना से ट्रांसजेंडर्स सैनिकों को बाहर करने की प्रक्रिया तेज: ट्रंप सरकार का बड़ा फैसला

वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में ट्रांसजेंडर समुदाय को लेकर लिए गए सख्त फैसलों की फेहरिस्त में एक और बड़ा कदम जुड़ गया है। अब ट्रंप प्रशासन ने ट्रांसजेंडर सैनिकों को सेना से बाहर करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सरकार ने अदालत में जानकारी देते हुए कहा कि अगले 30 दिनों में ट्रांसजेंडर सैनिकों की पहचान की जाएगी, और उसके बाद 30 दिनों के भीतर उन्हें सेना से हटा दिया जाएगा।

ट्रंप का सख्त रुख: “सैनिक बनने के लिए स्पष्ट लिंग पहचान जरूरी”

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकारी आदेश में यह स्पष्ट कर दिया कि जो पुरुष खुद को महिला के रूप में पहचानते हैं या जो महिलाएं खुद को पुरुष मानती हैं, वे अमेरिकी सेना में सेवा नहीं दे सकते। पेंटागन ने भी इस फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि सेना अब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भर्ती नहीं करेगी और सेवा सदस्यों के लिए लिंग परिवर्तन संबंधी सुविधाएं भी बंद कर देगी।

ट्रांसजेंडर सैनिकों पर गिरी गाज, 15 हजार से अधिक सैनिक प्रभावित

अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार, सेना में 13 लाख सक्रिय सैनिक कार्यरत हैं, जिनमें से ट्रांसजेंडर समुदाय के लगभग 15,000 से अधिक सैनिक अपनी सेवाएं दे रहे हैं। हालांकि, ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के बाद अब उन्हें सेना से बाहर होना होगा।

ट्रांसजेंडर सैनिकों को हटाने के पीछे सरकार ने “सैनिक की तत्परता, घातकता, सामंजस्य, ईमानदारी, एकरूपता और अखंडता” को मजबूत करने की दलील दी है।

आलोचना और विरोध के सुर तेज

ट्रांसजेंडर समुदाय और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। ट्रांसजेंडर अधिकार संगठनों का कहना है कि यह फैसला सैन्य सेवा में बराबरी के अधिकार पर सीधा हमला है। कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति संविधान के समान अधिकारों के सिद्धांत के खिलाफ जा सकती है।

क्या होगा ट्रांसजेंडर सैनिकों के साथ आगे?

हालांकि, ट्रंप प्रशासन अपने इस फैसले पर अडिग नजर आ रहा है, लेकिन कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ट्रांसजेंडर सैनिकों के समर्थन में कई संगठन अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

ट्रांसजेंडर सैनिकों का भविष्य अब अधर में है, लेकिन इस विवाद के चलते ट्रंप सरकार एक बार फिर से मानवाधिकार संगठनों और उदारवादी गुटों के निशाने पर आ गई है। आने वाले दिनों में इस फैसले के दूरगामी राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।

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