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हिम्बा जनजाति की अनोखी परंपरा: जब महिलाएं जिंदगी में सिर्फ एक बार नहाती हैं!


दुनिया में नहाने के तौर-तरीकों को लेकर कई मान्यताएँ हैं। कोई दिन में दो बार नहाने को जरूरी मानता है, तो कोई ठंड में हफ्तों तक बिना नहाए रह सकता है। लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक जनजाति ऐसी भी है, जहाँ महिलाएँ पूरी जिंदगी में सिर्फ एक बार नहाती हैं? सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन अफ्रीका की हिम्बा जनजाति की महिलाओं के लिए यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। खास बात यह है कि बिना पानी के स्नान करने के बावजूद ये महिलाएँ साफ-सुथरी रहती हैं और उनके शरीर से दुर्गंध भी नहीं आती।

धुएं और भाप से स्नान की अनूठी परंपरा

हिम्बा जनजाति अफ्रीका के नामीबिया देश में पाई जाती है। यह समुदाय रेगिस्तानी इलाकों में रहता है, जहाँ पानी दुर्लभ होता है। ऐसे में यहाँ के लोगों ने खुद को साफ रखने के लिए एक अनोखा तरीका विकसित किया है। हिम्बा महिलाएँ शरीर को धोने के बजाय “स्मोक बाथ” (धुएं का स्नान) लेती हैं। वे विभिन्न जड़ी-बूटियों को जलाकर उससे निकलने वाले धुएं में बैठती हैं, जिससे उनका शरीर स्वच्छ रहता है और किसी भी तरह की दुर्गंध नहीं आती। इसके अलावा, वे विशेष जड़ी-बूटियों को उबालकर उसकी भाप से शरीर को साफ करती हैं।

लाल रंग की त्वचा और प्राकृतिक सौंदर्य उपचार

लाल रंग की त्वचा और प्राकृतिक सौंदर्य उपचार

हिम्बा महिलाएँ अपनी त्वचा की सुरक्षा के लिए एक खास तरह का लेप लगाती हैं, जिसे “ओटजि पेस्ट” कहा जाता है। यह लेप जानवरों की चर्बी और एक खास लाल मिट्टी (हेमाटाइट) को मिलाकर बनाया जाता है। यह न केवल उनकी त्वचा को धूप से बचाता है, बल्कि उनकी त्वचा को आकर्षक लाल रंग भी देता है। यही कारण है कि हिम्बा महिलाएँ अपनी चमकती हुई लाल त्वचा के लिए प्रसिद्ध हैं।

जीवनशैली और संस्कृति

हिम्बा जनजाति की आबादी करीब 50,000 के आसपास है। ये लोग मुख्य रूप से गाय, बकरी और भेड़ पालते हैं। इस जनजाति में गायों का विशेष महत्व है। यदि किसी के पास गाय नहीं होती, तो उसे समाज में उतना सम्मान नहीं मिलता। उनकी दैनिक आहार प्रणाली भी काफी सरल है। वे ज्यादातर मक्के या बाजरे से बने दलिया का सेवन करते हैं, जबकि विशेष अवसरों पर मांस भी खाते हैं।

बच्चे के जन्म को लेकर दिलचस्प परंपरा

हिम्बा जनजाति में बच्चे के जन्म की तारीख को लेकर एक अनूठी मान्यता है। यहाँ जन्म की तारीख तब नहीं मानी जाती जब बच्चा दुनिया में आता है, बल्कि तब से मानी जाती है जब माँ ने बच्चे के बारे में सोचना शुरू किया हो। माँ बनने की इच्छा रखने वाली महिलाएँ जंगल में एकांत में बैठकर बच्चों से जुड़े गीत सुनती हैं और खुद भी एक गीत रचती हैं। यह गीत तब तक बच्चे के जीवन का हिस्सा बना रहता है जब तक वह बड़ा नहीं हो जाता।

आधुनिकता से दूर, अपनी परंपराओं पर कायम

दुनिया कितनी भी आगे बढ़ जाए, लेकिन हिम्बा जनजाति के लोगों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वे आज भी अपनी पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों को निभाते हुए जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनकी जीवनशैली यह दर्शाती है कि बिना आधुनिक साधनों के भी मनुष्य अपने पर्यावरण के अनुकूल रह सकता है।

हिम्बा जनजाति की यह अनोखी परंपरा हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या वास्तव में पानी से स्नान करना ही शरीर को साफ रखने का एकमात्र तरीका है? हिम्बा महिलाओं का धुएं और जड़ी-बूटियों से स्नान करने का तरीका हमें प्रकृति से जुड़े रहने और संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग करने की सीख देता है। यह जनजाति भले ही दुनिया की मुख्यधारा से दूर हो, लेकिन इनकी अनूठी जीवनशैली और संस्कृति हमेशा लोगों के लिए एक रोचक विषय बनी रहेगी।

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