नई दिल्ली। देश में वक्फ संपत्तियों की निगरानी और प्रबंधन से जुड़े वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर आज से सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई का आगाज़ हो गया है। संसद से पास होकर कानून का रूप ले चुके इस संशोधन के खिलाफ अब तक कुल 73 याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। इन याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ सुनवाई कर रही है।
इसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी सहित कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने याचिकाएं दायर की हैं। इन याचिकाओं में वक्फ संपत्तियों के अधिकारों में कटौती को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया गया है।
सरकार ने दायर की कैविएट
केंद्र सरकार ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर कर यह आग्रह किया है कि इस मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले सरकार का पक्ष सुना जाए। सरकार का कहना है कि संशोधन का मकसद पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करना है, न कि किसी समुदाय के अधिकारों का हनन।
संशोधन के विरोध में ज़मीन से सुप्रीम कोर्ट तक अभियान
AIMPLB ने वक्फ एक्ट के विरोध में ‘वक्फ बचाव अभियान’ शुरू कर दिया है। यह अभियान 11 अप्रैल से 7 जुलाई तक चलेगा, जिसमें देशभर से एक करोड़ लोगों के हस्ताक्षर लिए जाएंगे। बोर्ड ने इसे ऐतिहासिक लड़ाई करार देते हुए कहा है कि यह केवल संपत्ति का नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का मुद्दा है।
वक्फ एक्ट में बदलाव की टाइमलाइन
- 1954: केंद्र सरकार ने वक्फ अधिनियम बनाया
- 1955: राज्यों में वक्फ बोर्डों का गठन शुरू हुआ
- 8 अगस्त, 2024: संशोधन बिल लोकसभा में पेश
- 30 जनवरी, 2025: JPC ने रिपोर्ट सौंपी
- 2 अप्रैल, 2025: लोकसभा से पारित
- 3 अप्रैल, 2025: राज्यसभा से पारित
- अप्रैल 2025: केंद्र ने अधिनियम को अधिसूचित किया
वक्फ संपत्तियों का दायरा और जिम्मेदारियां
देश में वर्तमान में 32 वक्फ बोर्ड सक्रिय हैं, जिनका कार्य वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण, रखरखाव और आय-व्यय की निगरानी है। कुछ राज्यों में शिया और सुन्नी समुदायों के लिए अलग-अलग बोर्ड बनाए गए हैं।
क्या है याचिकाओं की मुख्य आपत्ति?
ओवैसी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि नए संशोधन में वक्फ संपत्तियों की रक्षा को कमजोर किया गया है और यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, जो समानता और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट से इस मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने का आग्रह किया था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
क्या है आगे की राह?
फिलहाल, कोर्ट ने 10 याचिकाओं को सूचीबद्ध किया है, लेकिन 60 से अधिक याचिकाएं लंबित हैं जिन्हें आने वाले हफ्तों में शामिल किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रशासन पर असर पड़ेगा, बल्कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की परिभाषा पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
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